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NAANAANAMA
श्राद्धविधि प्रकरण
२२६ पुत्र गर्भ में आया तबसे ही प्रतिदिन खराब खान, अनेक विध खराब विचार वगैरह होनेके कारण उसने जाना कि, यह गर्भ में आया तबसे ही ऐसा दुःखदायी मालूम देता है तब फिर जब इसका जन्म होगा तब न जाने हमें कितने बड़े दुःख सहन करने पड़ेंगे? इसलिए इसका जन्मते ही त्याग करना योग्य है। यह विचार किये बाद जब उसका जन्म हुवा तब मृत्युयोग होनेसे विशेष शंका होनेके कारण उस जातमात्र बालकको ले कर शेठने मलहण नामक नदीके किनारे आ कर एक सूखे हुए पत्तों वाले वृक्षके नीचे रख कर शेठ वापिस जाने लगा। उस वक्त कुछ हंस कर बालक बोला कि, तुम्हारे पास मेरे एक लाख सौनये-सुवर्ण मुद्रार निकलते हैं सो मुझे दे दो ! अन्यथा तुम्हें अवश्य ही कुछ अनर्थ होगा। यह वचन सुन कर शेठ उसे वापिस घर ले आया और उसका जन्मोत्सव, छटी जागरण, नामस्थापना, अन्नप्राशन, वगैरहके महोत्सव करते एक लाख सुवर्ण मुद्रायें शेठने उसके लिये खर्च की। इससे वह अपना कर्ज अदा कर चलता बना। फिर दूसरा पुत्र भी इसी प्रकार पैदा हुवा और वह उसका तीन लाख कर्ज अदा कर चला गया। इसके बाद शुभ शकुनादि सूचित एक तीसरा पुत्र गर्भ में आया। तब यह जरूर ही भाग्यशाली निकलेगा शेठने यह निर्धारित किया था तथापि दो पुत्रोंके सम्बन्धमें बने हुए बनावसे डर कर जब वह तीसरे पुत्रका परित्याग करने आया तब वह पुत्र बोला 'मुझ पर तुम्हारा उन्नीस लाख सोनयोंका कर्ज है उसे अदा करनेके लिये मैंने तुम्हारे घर अवतार लिया है। वह कर्ज दिए बिना मैं तुम्हारे घरसे नहीं जा सकता। यह सुन कर शेठने विचार किया कि इसकी जितनी कमाई होगी सो सब धार्मिक कार्यों में खर्च डालूंगा। यह विचार कर उसे वापिस घर पर ला पाल पोश कर बड़ा किया और वह जावड़ साहके नामसे प्रसिद्ध हो वह ऐसा भाग्यशाली निकला कि जिसने श्री शत्रुजय तीर्थका विक्रमादित्य संवत् १०८ में बड़ा उद्धार किया था। उसका वृत्तान्त अप्रसिद्ध होनेसे ग्रन्थान्तर से यहां पर कुछ संक्षिप्तमें लिखा जाता है
सोरठ देशमें कम्बिलपुर नगरमें भावड़ शेठ एक बड़ा व्यापारी ब्यापार करता था। उसे सुशीला पतिव्रता भाविला नामकी स्त्री थी। उन दोनोंको प्रेमपूर्वक सांसारिक सुख भोगते हुए कितने एक समय बाद दैवयोग चपल स्वभावा लक्ष्मी उनके घरसे निकल गई, अर्थात वे निर्धन होगये। तथापि वह अपनी अल्प पूंजीके अनुसार प्रमाणिकता से व्यापार वगैरह करके अपनी आजीविका चलाता है। यद्यपि वह निर्धन है और थोड़ी आयसे अपना भरणपोषण करता है तथापि धार्मिक कार्योंमें परिणामकी अतिवृद्धि होनेसे दोनों वक्त के प्रतिक्रमण, त्रिकाल जिनपूजन, गुरुवन्दन, यथाशक्ति तपश्चर्या, और सुपात्र दानादिमें प्रबृत्ति करते हुए अपने समयको सफलता से व्यतीत करता है। ऐसा करते हुए एक समय उसके घर गोचरी फिरते हुए दो मुनि आ निकले। भाविला शेठानी मुनिमहाराजों को अतिभक्ति पूर्वक नमन वन्दन कर आहारादिक बोरा कर बोली-महाराज! हमारे भाग्यका उदय कब होगा ? तब उनमेंसे एक ज्ञानी मुनि बोला "हे कल्याणी ! आज तुम्हारी दूकान पर कोई एक उत्तम जातिवाली घोड़ी बेवनेको आयंगा; ज्यों बने त्यों उसे खरीद लेना। उसे जो किशोर--बछेरा होगा उससे तुम्हारा भाग्योदय होगा। फिर तुम्हें जो पुत्र होगा वह ऐसा भाग्यशाली होगा कि, जो शत्रुजय तीर्थपर तीर्थोद्धार करेगा। यद्यपि मुनियोंको निमित्त