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श्राद्धविधि प्रकरण ___ कदाचित् किसी व्यापार प्रमुखकी हानि होनेसे लिया हुवा फर्ज न दिया जाय ऐसी असमर्थता हो गई हो तथापि 'आपका धन मुझे जरूर देना ही है परन्तु वह धीरे धीरे दूंगा' यों कह कर थोड़ा २ भी नियुक्त की हुई अवधिमें दे कर लेने वालेको संतोषित करना। परन्तु कटु वचन वोल कर अपना व्यवहार भंग न करना, क्योंकि व्यवहार भंग होनेसे दूसरी जगहसे मिलता हो तो भी नहीं मिलता, इससे ब्यापार आदिमें हर. कत आनेसे ऋण मोचन सर्वथा असम्भवित हो जाय । इसलिए ज्यों बने त्यों कर्जा उतारने में प्रवर्तना । याने थोड़ा खाना, थोड़ा खर्चना, परन्तु जैसे सत्वर ऋणमुक्ति हो वैसे करना । ऐसा कौन मूर्ख होगा कि, जो दोनों भवमें पराभव-दुःख देने वाले ऋणको उतारने का समय आने पर क्षणवार भी विलम्ब करे । कहा है कि
धर्मारम्भे ऋणच्छेदे । कन्यादाने धनागमे ॥
शत्रुघातेऽग्निरोगे च । कालक्षेपं न कारयेत् ॥ धर्म साधन करनेमें, कर्ज उतारने में, कन्यादान में, आते हुए द्रव्यको अंगीकार करनेमें, शत्रुके मार डालनेमें, अग्निको बुझानेमें और रोगको दूर करनेमें विशेष विलम्ब नहीं करना ।
तैलाभ्यंगं ऋणच्छेद। कन्या मरणपेव च ॥
एतानि सद्यो दुःखानि । परिणामे सुखावहा ॥ तैलमर्दन, ऋणमोचन और कन्याका मरण ये तत्काल ही दुःखदायी मालूम होते हैं परन्तु परिणाम में सुखदायक होते हैं।
अपने पेटका भी पूरा न होता हो ऐसे कर्जदार को अपना कर्ज देनेके लिए दूसरा कोई उपाय न बन सके तो अन्तमें उसके यहाँ नौकरी वगैरह कार्य करके भी ऋणमोचन करना चाहिए। यदि ऐसा न करे तो याने किसी प्रकारान्तर से भी कर्जदार का कर्ज न दे तो भवान्तर में उसके घर पुत्र, पुत्री, बहिन, भांजी, दास, दासी, भैंसा, गधा, खच्चर, घोड़ा, आदिका अवतार उसका कर्ज देनेके लिए अवश्य धारण करना पड़ता है।
उत्तम लेने वाला वही कहा जाता है कि जब उसे यह मालूम हो कि इस कर्जदार के पास अब बिलकुल कर्ज अदा करनेको द्रव्य नहीं है उस वक्त उसे छोड़ दे। यह समझ कर कि दरिद्रीको व्यर्थ ही क्लेश या पाप वृद्धिके हिस्सेमें डालनेसे मुझे क्या फायदा होगा। उसमें से जो कर्ज न दे सके वैसे कर्जदार पर दबाव करनेसे दोनोंको नये भव बढ़ानेकी जरूर पड़ती है, इसलिये उसे जाकर कहे भाई जब तुझे मिले तब देना और न दिया जाय तो यह समझना कि मैंने धर्मार्थ दिया था, यों कह कर जमा कर ले। परन्तु बहुत समय तक ऋण सम्बन्ध रखना उचित नहीं, क्योंकि वह कर्ज शिर पर होते हुए यदि इतनेमें एकाएकी आयुष्य पूर्ण होने से मृत्यु आ जाय तो भवान्तर में दोनों जनोंको वैर वृद्धिकी प्राप्ति होती है।
"कर्ज पर भावड़ शेठका दृष्टान्त”
सुना जाता है कि भावड़ शेठसे फर्ज लेनेके लिए अवतार धारण करनने वाले दो पुत्रोंमें से जब पहिला