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श्राद्धविधि प्रकरण
" मानसिक मलीनता पर दो मित्रोंका दृष्टान्त"
कहीं पर दो मित्र व्यापारी थे। उनमें एक घीका और दूसरा चर्म - वामका संग्रह करनेको निकले । वे दोनों किसी एक गांव में आ कर रहे। वे सन्ध्या समय किसी एक वयोवृद्धा धाबे वालीके घर रसोई करा जीने आये, तब उसने पूछा कि, तुम आगे कहां जाते हो ? और क्या व्यापार करते हो ? एकने कहा कि, मैं अमुक गांव में घी लेने जाता हूं और मैं घीका दूसरेने कहा कि, मैं चमड़े का व्यापारी होनेसे अमुक गांव मड़ा खरीदने जा रहा हूं। उनके मानसिक परिणाम का विचार करके उन दोनों में से घीके व्यापारी को अपने घर के कमरे में बैठा कर जिमाया और चमड़े के व्यापारीको घरके बाहर बैठा कर जिमाया। यद्यपि उन दोनोंके मनमें इस बातकी शंका अवश्य पड़ी परन्तु वे कुछ पूछताछ किये बिना ही वहांसे चले गये। फिरसे माल खरीद कर वापिस लौटते समय भी उसी गांवमें आ कर उसी वाली बुढ़िया घर जीमने आये। तब उस बुढ़ियाने चमड़े के खरीदार को घरमें और घीके खरीदार घर बाहिर बैठा कर जिमाया। जीम कर वे दोनों जने उसके पैसे देते हुए पूछने लगे कि, हम दोनोंको उस दिन की अपेक्षा आज स्थान बदल कर जिमाने क्यों बैठाया ? उसने उत्तर दिया कि, जब तुम माल खरीदने जाते थे उस वक्त जो तुम्हारा परिणाम था वह अब बदल गया है, इसो कारण मैंने तुम्हें जुदे अदल बदल स्थान पर जिमाये हैं। जब घी लेने जाता था तब घो खरीदार के मनमें ऐसा विचार था कि यदि वृष्टि अच्छी हुई हो घास पानी सरसाई वाला हो तो उससे गाय, भैंस, बकरी, भेड़ वगैरह सब सुखी हों इससे घी सस्ता मिले । अब लौटते समय घी बेचनेका विचार होनेसे वह विचार बदल गया; इसी कारण प्रथम घी खरीदार को घरके अन्दर और इस वक्त घरके बाहर बैठाके जिमाया। चमड़ा खरीदार को जाते समय यह विचार था कि यदि गाय, भैंस, बैल वगैरह अधिक मरे हों तो ठीक रहे क्योंकि वैसा होने पर ही माल सस्ता मिलता है, और अब लौटते समय इसका विचार बदल गया, क्योंकि यदि अब चमड़ा मँहगा हो तो ठीक रहे । इसलिए पहले इसे घर के बाहर और अब लौटते समय घरके अन्दर बैठा कर जिमाया है। ऐसी युक्ति सुन कर दोनों जने आश्चर्य चकित हो चुपचाप चले गये । परिणाम से यह विचार करनेका आशय बतलाते हैं ।
यहाँ पर जहाँ परिणाम की मलीनता हो वह कार्य करना योग्य नहीं गिना गया। दूसरेको लाभ होता हुवा देख उसमें मत्सर करना यह तो प्रत्यक्ष ही परिणाम की मलीनता देख पड़ती है, इसलिए किसी पर मत्सर न करना चाहिए। इसीलिए पंचाशक में कहा है कि "उचित सैकड़ पर जो व्याज लेनेसे या "व्याजेस्यावद्विगुणं वित्त" व्याजसे दूना द्रव्य हो, ऐसे धान्यके व्यापारसे दुगुना, तिगुना लाभ होता है यह समझ कर नाप कर, भरके, तोड़ कर, तोल कर, बेचनेके भावसे जो लाभ हो उसमें भी यदि उस वर्ष में उस मालकी फसल न होने से उसका भाव चढ़नेके कारण यदि अधिक लाभ हो तो उसे छोड़ कर दूसरा ग्रहण न करे ( क्योंकि जब माल लिया था तब कुछ यह जान कर न लिया था कि इस साल इस मालका पाक अधिक न होनेसे दुगुना तिगुना या चौगुना लाभ लेना ही है। इसलिये माल खरीद किये
व्यापार करता हूं। रसोई करने वालीने