________________
श्राद्धविधि प्रकरण मनुष्यको हरएक कार्य करते हुये अपना बलाबल देखना चाहिये और उसके अनुसार ही उस समय वर्ताव करना चाहिये। ____धनवानके साथ व्यापार करते हुए कुछ भी बाधा पड़े तो नम्रतासे ही उसका समाधान करना परन्तु उसके साथ क्लेश न उठाना। क्योंकि, धनवानके साथ, बल, कलह, न करना ऐसा प्रत्याख्यान नीतिमें लिखा है। कहा है कि उत्तम पुरुषको नम्रतासे अपनेसे अधिक वलिष्टको पारस्परिक भेद नीतिसे, नीचको कुछ देकर ललचाके और समानको पराक्रमसे वश करना।
___उपरोक्त न्यायके अनुसार धनार्थी और धनवन्तको अवश्य क्षमा रखनी चाहिये। क्योंकि क्षमा ही लक्ष्मीकी वृद्धि करनेमें समर्थ है । जिस लिये नीतिमें कहा है कि;-विप्रको होम और मन्त्रका बल है, राजा को नीति और शस्त्रका वल है, अनाथोंको-दुर्बलोंको राजाका वल है, और व्यापारियोंको क्षमा बल है। धन प्राप्तिका मूल प्रिय बचन और क्षमा है। काम सेवनका विषय विलासका मूल धन; निरोगी शरीर और तारुण्य है। धर्मका मूल दान, दया और इन्द्रीय दमन है, और मोक्षका मूल संसारके समस्त सम्बन्धोंको छोड़ देना है।
- दंत कलह तो सर्वथा ही सर्वत्र त्यागना चाहिये। जिसके लिए लक्ष्मी दारीद्रयके संवादमें कहा है कि,"लक्ष्मी कहती है -“हे इन्द्र ! जहां पर गुरु जनकी-माता पिता धर्म गुरुकी पूजा होती है; जहां न्या. यसे लक्ष्मी प्राप्त की जाती है; और जहां पर प्रति दिन दंत कलह-झगड़ा टंटा होता है मैं वहां ही निवास करती हूं।" फिर दारीद्रयको पूछा तू कहां रहता है ? वह बोला--"जुवे बाजोंको पोषण करने वाले, अपने सगे सम्बन्धियोंसे द्वेष रखने वाले, कीमियासे धन प्राप्तिकी इच्छा रखने वाले सदा आलसु, आय और व्ययका विचार न करने बाले पुरुषोंके घर पर मैं सदैव रहता हूँ।" .
.. "उघरानी करनेकी रीति" -- लेना, लेने जाना हो उस समय भी वहांपर नरमात रखनी चाहिये, परन्तु लोगोंमें निन्दा हो वैसा बचन न बोलना, याने युक्ति पूर्वक प्रसन्नता पैदा करके मांगना जिससे देने वालेको लेने वालेके प्रति देनेकी रुचि पैदा हो। यदि ऐसा न किया जाय तो दाक्षिण्यता आदि गुण लोप होकर धन, धर्म, और प्रतिष्ठाकी हानि होती है। इसी लिए लेना लेने जाते समय या मांगते समय बिचार पूर्वक वर्तन करना चाहिये। तथा जिसमें स्वयं लंघन करना पड़े और दूसरोंको भी कराना पड़े वैसा काम सर्वथा वर्ज देना। तथा स्वयं भोजन करना और दूसरेको (देनदारको ) लंघन कराना यह सर्वथा अयोग्य ही है, क्योंकि भोजनका अन्तराय करनेसे ढंढण कुमारादिके समान अत्यंत भयंकर कर्म बन्धते हैं। यदि अपना कार्य शाम स्नेहसे बन सकता हो तो कठनाई ग्रहण करना योग्य नहीं। व्यापारीको तो स्नेहसे काम वने तब तक लड़ाई झगड़ा कदापि न करना चाहिये। कहा है कि, यद्यपि साध्य साधनमें काम निकालनेमें शाम, दाम. भेद, और दंड ये चार उपाय प्रख्यात हैं तथापि अन्तिम तीनका संज्ञा मात्र फल है, परन्तु सिद्धि तो शाममें ही समाई है। जो कोमल क्वन्से वश नहीं होता-एक दफा उघरानी करनेसे धन नहीं देता वह अन्तमें कटु, कठोर, बचन प्रहार सहन करने वाला बनता है। जैसे कि दांत, जीभके उपासक बनते हैं।