________________
२३५
श्राद्धविधि प्रकरण यात्रिक लोग खेद खिन्न होगये। कपर्दिक यक्षने अपने सेवक यक्षोंसे वह सब कुछ दूर करा कर पवित्र जल मंगाकर उस सारे पहाड़को धुलवा डाला, तथा मूलनायक वगैरहके जो मन्दिर टूट फूट गये थे, खंडित होगये थे उन्हें देख कर जावडको बड़ा दुःख हुवा। रात्रिके सयय सकल संघके सो जाने बाद वे दुष्ट देवता एक बड़े रथमें लायी हुई भगवान श्री ऋषभदेवकी प्रतिमाको पर्वतसे नीचे उतार लेगये। प्रभातमें जब मंगल बाजे बजते हुए जावड जागृत होकर दर्शन करने गया तव वहां प्रतिमाको न देख कर अति दुःखित होने लगा फिर वज्र स्वामी और कपदी यक्ष दोनों जन अपनी दिव्य शक्तिसे प्रतिमाको पुनः मुख्य हूँक पर लाये। इसी प्रकार दूसरी रातको भी उन दुष्ट देवताओं ने प्रतिमाको नीचे उतार लिया। मगर फिर भी वह ऊपर ले आये। इस प्रकार इक्कीस रोज तक प्रतिमाजी का नीचे ऊपर आवागमन होता रहा। तथापि जब वे दुष्ट देवता बिलकुल शान्त न हुए तब श्रीवज्रस्वामी ने कपर्दी यक्ष और जावड़ संघपति को बुला कर कहा कि हे कपदों! आज रातकोतू अपने सब यक्षोंके परिवार सहित शद्र देवताओं रूप तणोंको
सारे आकाश मंडलको आच्छादित कर सावधान हो कर रहना। मेरे मंत्रकी शक्तिसे तेरा शरीर वज्रके समान अभेद्य हो जानेसे तुझे कुछ भी कोई उपद्रव न कर सकेगा। हे जावड़ ! तुम अपनी स्त्री सहित स्नान करके पंच नमस्कार गिन कर श्रीऋषभदेव का स्मरण करके प्रतिमाजी को स्थिर करनेके लिए रथके पहियों के बीच दोनों जने दोनों तरफ शयन करो। जिससे वे दुष्ट तुम्हें उलंघन करनेमें समर्थ न होंगे। और मैं सकल संघ सहित सारी रात कार्योत्सर्ग ध्यानमें रहूंगा। गुरुदेव के यह वचन सुन कर नमस्कार कर सब जने अपने २ कृत्यमें लग गये । समय आने पर वज्रवामी भी निश्चल ध्यानमें तत्पर हो कायोत्सर्ग में खड़े रहे। फिर वे दुष्ट देवता फुफाटे मारते हुए अन्दर आनेके लिए बड़ा उद्यम करने लगे, परन्तु उनके पुण्य, ध्यान, बलसे किसी जगहसे भी वे अन्दर प्रवेश न कर सके । ऐसे करते हुए जब प्रातःकाल हुवा तब गुरुदेवने सकल संघ सहित कायोत्सर्ग पूर्ण किया। प्रतिमा जैसे रक्खी थी वैसे ही स्थिर रही देख प्रमोदसे रोमांचित हो सकल मंगल वाद्य बजते हुए धवल मंगल गाते हुए महोत्सव पूर्वक प्रतिमाजी को मूट नायकके मन्दिरके सामने लाये । वज्रवामी जावड़ संघपति और उसकी स्त्री सुशीला तथा संघकी रक्षा करनेके लिए रक्खे हुए महाधर पदवीको धारण करने वाले चार पुरुष पुराने मन्दिरमें प्रवेश कर प्रयत्नसे उसकी प्रमार्जना करने लगे। गुरु महाराज ध्यान करके दुष्ट देवताका उपद्रव निवारण करनेके लिए चारों तरफ अक्षत प्रक्षेपादिक शांतिक करने लगे, तब शूद्र देवताओं के समुदाय सहित पहलेका कपर्दिक क्रोधायमान हो पुरानी प्रतिमा को आश्रय करके रहा ! (पुरानी प्रतिमा को न उठाने देनेको ही उसका मतलब था ), परन्तु नई प्रतिमा स्थापन करनेके लिए जब संघपति वहां पर आया तब वज्रस्वामीके मंत्रसे स्तंभित हुवा दुष्ट देवता उन्हें पराभव करने में समर्थ न हो सका तब एक बड़े घोर शब्दसे आराटी करने लगा ( चिल्लाहट करने लगा) उसकी आराटीका इतना शब्द पसरा कि ज्योतिष चक्र तक भयंकरता होते हुए बड़े २ पर्वत, समुद्र और सारी पृथ्वी भी कांपने लग गई । हाथी घोड़ा, व्याघ्र, सिंहादिक भी मूर्छा पा गए। पर्वतके शिखर टूट कर गिरने लगे; शत्रुजय पर्वतके भी फट जानेसे दक्षिण और उत्तर दो विभाग हो गये। जावड़ संघपति, सुशीला और वनखामी इन