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श्राद्धविधि प्रकरण गुरुके पास किसी भीत वगैरहका अवलम्बन लेकर न बैठना, एवं हास्य-विनोद न करना तथा जो पहले हम कह आये हैं गुरुकी उन आसातनाओं को वर्ज कर विनयपूर्वक हाथ जोड़कर बैठना चाहिये ।
निन्दा, विकथा, छोड़कर, मन, बचन, कायाकी एकाग्रता रखकर, दो हाथ जोड़कर, ध्यान रखकर, भक्ति बहुमान पूर्वक, देशना सुनना। आगममें बतलाई हुई रीतिके अनुसार आसातना तजनेके लिये गुरुसे साढ़े तीन हाथ अवग्रह क्षेत्रसे बाहर रह कर निजी स्थान पर बैठकर देशना सुनना। कहा है कि,
धन्यसो परिनिपत। त्यहित समाचरणधर्म निर्वा पी॥
गुरुवदनमलय निःसृत। वचनरसश्चांदनस्पर्शः॥ अहित कार्यके समाचरण करनेसे उत्पन्न हुये पापरूप तापको समानेवाले, और चन्दनके स्पर्श समान शीतल गुरुके मुखरूप मलयागिरि से निकला हुवा वचनरूप रस प्रशंसा पात्र प्राणियों पर पड़ता है। . धर्मोपदेश सुननेसे अज्ञान और मिथ्यात्व-विपरीत समझका नाश, सत्य तत्त्व की, निःसंशयता की, एवं धर्मपर दृढ़ताकी प्राप्ति, सप्त व्यसनरूप उन्मार्गसे निवृत्ति, और सन्मार्गकी प्रवृत्ति, कषायादि दोषोंका उपशम, विनय, विवेक, श्रुत, तप, सुशीलादिक गुण उपार्जन करनेका उद्यम, कुसंसर्ग का परिहार और सत्समागम का स्वीकार, असार संसारका त्याग एवं वस्तुमात्र पर वैराग्य, सच्चे अंतःकरण से साधु या श्रावक धर्मको आग्रह पूर्वक पालनेकी अभिरुचि, संसारमें सारभूत धर्मको एकाग्रता से आराधन करमेका आग्रह इत्यादिक अनेक गुणकी प्राप्ति, नास्तिकवादी प्रदेशी राजा, आमराजा, कुमारपाल भूपाल, थावश्चापुत्रादिकों. को जैसे एक २ दफा धर्म सुननेसे हुई वैसे ही जो सुने उसे लाभकी प्राप्ति होती है। इसके लिये शास्त्रमें कहा है कि:
मोहंधियो हरति कापथ मुच्छिनत्ति । संवेग मुन्नमयति प्रशमं तनोति ॥
सूते विरागमधिकं मुदमादधाति । जैनं वचः श्रवणतः किमुपन्नदत्ते ॥१॥ मोहित बुद्धिको दूर करता है, उन्मार्गको दूर करता है, सम्वेग-मोक्षाभिलाष उत्पन्न करता है, शान्त परिणाम को विस्तृत करता है, अधिक वैराग्यको पैदा करता है, वित्तमें अधिक हर्ष पैदा करता है, इसलिए इस जगतमें ऐसी कौनसी अधिक वस्तु है कि, जो जिनवचन के श्रवण करनेसे न मिल सकती हो?
पिंडः पाती बन्धवो बन्धभूताः सूतेनानर्थ संपब्दिचित्रान् ॥
____ संवेगाद्याः जैन वाक्यप्रसूताः कि कि कुयुनोपकारं नराणां ॥२॥ शरीर अन्तमें विनश्वर ही है, कुटुम्ब बन्धनभूत ही है, अर्थ सम्पदा भी विचित्र प्रकारके अनर्थ उत्पन्न करनेवाली है, ऐसा विदित करानेवाले जिनराज की वाणीसे प्रगट हुए संवेगादि गुण प्राणियों पर क्या २ उपकार नहीं करते ? अर्थात् प्रभु वाणी श्रवण करने वाले मनुष्य पर सर्व प्रकार के उपकार करती है।
"प्रदेशी राजाका संक्षिप्त दृष्टान्त" श्वेताम्बीनगरीमें प्रदेशी राजा राज्य करता था। उसका चित्रसारथी नामक दीवान किसी राजकीय