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श्राद्धविधि प्रकरण कहने लगा कि, यह सब तुम्हारी ही छीटें उड़ी हुई मालूम देती हैं, परन्तु अब किस तरहसे छुटकारा हो, इसका कोई उपाय है? शेठ बोला--"मेरे एकही लड़का है कुछ उपाय बतलाने से आपको जीवितदान दिये समान पुण्य होगा। आप जो कहैं सो मैं आपको देनेके लिये तैयार हूं, परन्तु मेरा लड़का बच जाय वैसा करो।" बुद्धिधन बोला-"क्यों पांचसौ वापिस न लिये होते तो यह प्रसंग आता ? खैर लड़केको बवा दूं तो क्या दोगे ? "शेठ वोला -"एक लाख रुपये ।"बुद्धिधन-नहीं नहीं इतनेमें कोई बच सकता है ? एक करोड़ लूंगा।" अन्तमें हां ना करके १० लाख रुपये ठहरा कर मदनसुन्दर को पास बुलाकर सिखलाया कि जब तुझे कचहरोमें गवाही देनेके लिये खड़ा करें तब तू प्रथम प्रश्न पूछने पर यही उत्तर देना कि आज तो मैंने कुछ नहीं खाया । जब फिरसे पूछे तब कहना कि, अभी तक तो पानी भी नहीं पिया । तब तुझे कहेंगे कि अरे मूर्ख ! तु यह क्या बकता है ? जो पूछते हैं उसका उत्तर क्यों नहीं देता ? उस वक्त तू कुछ भी अण्डवण्ड बकने लगना । तुझसे जो २ सवाल किया जाय तू उसका कुछ भी सीधा उत्तर न देना । मानो यह कुछ समझता ही नहीं ऐसा अनजान बन जाना। यदि तू कुछ भी उसके सवालका उत्तर देगा तो फिर तु स्वयं गुन्हेगार बन जायगा। इसलिये पागलके जैसा बनाव बतलाने से तुझे बेवकूफ जानकर तत्काल ही छोड़ दिया जावेगा। धनावह शेठ बोला-"यह तो ठीक है तथापि ऐसा करते हुए भी यदि बोलनेमें कहीं चूक होगई तो ? " बुद्धिधन वोला-"तो हरकत ही क्या है ? फिर से फीस भरना तो उसका भी उपाय बतला दूंगा। इसमें क्या बड़ी बात है।" फिर मदनसुन्दर को ज्यों त्यों समझा कर समय पर दरबारमें भेजा । अन्तमें बुद्धिधनके बतलाये हुए उपायका अनुसरण करनेसे वह बच गया। इसलिए जो ऐती बुद्धिसे कमा खाता है उसे विद्या नामकी अजीविका कहते हैं और वह कमाईके उपायमें उत्तम उपाय गिना जाता है।
करकर्मकारी-हाथसे लेन देन करने वाला व्यापारी । पादकर्मकारी दूतादिक । शिर कर्मकारी-भार वाहक आदि ( बोझ उठाने वाले ) सेवा-नौकरी नामकी जो आजीविका है सो। १ राजाकी, २ दीवानकी; ३ श्रीमन्त व्यापारी की, ४ लोगोंकी, ऐसे चार प्रकारकी है। राजा प्रमुखकी सेवा नित्य परवश रहने वगैरहके कारण जैसे तैसे मनुष्यसे बननी बड़ी मुष्किल है क्योंकि, शास्त्रमें कहा है,:
मौनान्मूक प्रवचनपटु । तुलो जल्पको वा॥ घृष्टः पाश्र्वे भवति च तथा दूरतश्चा प्रगल्भः ॥ तात्या भीर्यदिन सहते प्रायशो नाभिजातः॥
सेवाधर्म परमगहनो योगिनामप्यगम्यः॥१॥ यदि नौकर विशेष न बोले तो शेठ कहेगा कि, यह तो गूंगा है, कुछ बोलता ही नहीं, यदि अधिक बोले तो मालिक कहेगा अरे यह तो वाचाल है, बहुत बड़ बड़ाहट करता है। यदि नौकर मालिकके पास बैठे तो मालिक कहेगा कि, देखो इसे जरा भी शर्म है यह तो बिलकुल धीट है। यदि दूर बैठे तो कहा जाता है कि, अरे ! यह तो बिलकुल बे समझ हैं, मूर्ख है, देखो तो सही कहां जा बैठा, जब काम पड़े तब क्या इसका