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श्राद्धविधि प्रकरण
अधमाः पादकर्माणः । शिरः कर्माधमाधमाः ॥
बुद्धिकर्म करता है वह उत्तम पुरुष है, जो हाथसे कर्म करता है वह मध्यम है, जो पैरसे काम करता है वह अधम है और जो मस्तकसे काम करता है वह अधममें अधम है । याने जो बुद्धिसे कमा खाता है वह उत्तम, हाथसे मेहनत कर कमा खाता है वह मध्यम, पैरोंसे चलकर नौकरी वगैरह करे वह अधम ! और मस्तक पर भार उठाकर कुलीकर्म अधममें अधम है ।
"बुद्धिसे कमाने वाले पर दृष्टान्त"
चम्पा नामक नगरी में मदनसुन्दर नामका धनावह शेठका पुत्र रहता था । वह एक दिन बजारमें फिरता हुवा बुद्धि बेचनेवाले की दूकान पर गया। वहांसे उसने पांचसौ रुपये देकर 'जहां दो जने लड़ते हों वहां खड़े न रहना' ऐसी एक बुद्धि- खरीदी। घर आकर मित्रसे बात करने पर वह उसकी हंसी करने लगा, अन्तमें जब उसके पिताको मालूम हुआ, तब उसने ताड़न तर्जन करके कहा कि हमें ऐसी बुद्धिका कुछ काम नहीं, अपने पांच सौ रुपये पीछे ले आ । मदनसुन्दर शरमिंदा होता हुवा बुद्धिवालेकी दूकान पर जाकर कहने लगा कि हमें आपकी बुद्धि पसन्द नहीं आई, इसलिये उसे पीछे लो और मेरे पांच सौ रुपये मुझे वापिस दो ! क्योंकि मेरे घरमें इससे बड़ा क्लेष होता है । दूकानदार बोला- “तुझे पांचसौ रुपये वापिस देता हूं परन्तु जब कहीं दो जने लड़ते हों और तू वहांसे निकले तो तुझे वहां ही खड़े रहना पड़ेगा और यदि खड़ा न रहा तो हमारी बुद्धिके अनुसार वर्ताव किया गिना जायगा और इससे उस दिन तुझे पांचसौ रुपये के बदले मुझे एक हजार रुपये देने पड़ेंगे। यह बात तुझे मंजूर है ?” उसने हाँ कहकर पांच सौ रुपये वापिस ले अपने पिताको दे दिये। कितनेक वर्ष, महीने बीतने पर एक जगह संजाके दो सिपाही किसी बातमें मतभेद होनेसे रास्ते में खड़े लड़ रहे थे, दैवयोग मदनसुन्दर भी उसी रास्ते से निकला। अब उसने विचार किया कि यदि मैं यहांसे चला जाऊंगा तो उस बुद्धिवालेका गुनहगार बनूंगा, और उसे एक हजार रुपये देने पड़ेंगे। इससे वह कुछ देर वहां खड़ा रहा, इतनेमें वे दोनों सिपाही उसे गवाह करके चले गये । रात्रिके समय उनमें से एक सिपाही मदनसुन्दर के पिताके पास आ कर कहने लगा कि, आपके पुत्रको हम दोनों जनोंने साक्षी गवाह किया है, इससे जब वह दरवारमें गवाही देनेको आवे तब यदि मेरे लाभमें नहीं बोला तो यह समझ रखना कि फिर तुम्हारा पुत्र ही नहीं। यों कहकर उसके गये बाद दूसरा सिपाही भी वहां आया और शेठसे कहने लगा कि, यदि तुम्हारा पुत्र मेरे हित में गवाही न देगा तो यह निश्चय समझ रखना कि, इसका पुनर्जन्म नजीक ही आया है, क्योंकि, मैं उसे जान से मार डालूंगा। ऐसी घुड़की दे कर चला गया। इन दोनोंमें से किसके पक्षमें बोलना और किसके नहीं, जिसके पक्ष में बोलूंगा उससे बिपरीत दूसरे की तरफसे सचमुच ही मुझपर बड़ा संकट आपड़ेगा। इस विचार से शेठजीके दोष हवास उड़ गये और घबरा कर बोलने लगा कि, हा ! हा !! अब क्या करना चाहिए ? सचमुच ही यह तो व्यर्थ कष्ट आ पड़ा ! अन्तमें लाचार हो वह उसी बुद्धि वालेकी दुकान पर आ कर
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