________________
श्राद्धविधि प्रकरण ... हृदय रूप कमल में 'उ'कार का चिंतन करो! और कंठ पर 'सा' कार का चिंतन करो। सर्व कल्याणकारी अन्य भी 'सर्वसिद्ध भ्यः नमः, ऐसे भी मंत्राक्षर स्मरण करना।
। मन्त्रः प्रणवपूर्वोय, फलमैहिकमिच्छुभिः ।
ध्येयः प्रणवहीनस्तु, निर्वाणपदकांक्षिभिः ॥ ६ ।' इस लोक के फल की वांछा रखने वाले साधक पुरुष को नवकार मंत्र की आदि में "ॐ" अक्षर उच्चार करना चाहिये। और मोक्ष पद की आकांक्षा रखने वाले को उसका उच्चार न करना चाहिये ।
एवं च मन्त्रविद्यानां वर्णेषु च पदेषु च ।
विश्लेषः क्रमशः कुर्यारलक्ष्यभावोपपत्तये ॥ ७ ॥ इस प्रकार मंत्र के वर्ण में और पद में अरिहन्तादि के ध्यान में लीन होने के लिए यदि फेर फार करना मालूम दे तो करना चाहिये । जाप आदि के करने से महा लाभ की प्राप्ति होती है; कहा भी है कि
पूजाकोटि समं स्तोत्रं, स्तोत्रकोटि समो जपः ।।
जपकोटि समं ध्यान, ध्यानकोटि समो लयः ॥१॥ पूजा को अपेक्षा करोड़ गुना लाभ स्तोत्र गिनने में, स्तोत्र से करोड़ गुना लाभ जाप करने में, जाप से करोड़ गुना लाभ ध्यान में, और ध्यान से करोड़ गुना अधिक लाभ लीनता में है। __ ध्यान ठहराने के लिये जहां जिनेश्वर भगवान का जन्म कल्याणक हुवा हो तद्रूप तीर्थस्थान तथा जहां पर ध्यान स्थिर हो सके ऐसे हर एक एकांत स्थान में जाकर ध्यान करना गहिए।
ध्यान शतक में कहा है कि, ध्यान के समय साधु पुरुष को स्त्री, पशु, नपुंसक कुशोल, (वेश्या, रंडा, नट वीट, लंपट ) वर्जित एकांत स्थान का आश्रय लेना चाहिये। जिसने योग स्थिर किया है ऐसे निश्चल मन वाले मुनि को चाहिये कि जिसमें बहुत से मनुष्य ध्यान करते हों ऐसा गांव अटवी बन और शन्य स्थान जो ध्यान करने योग्य हो उसका आश्रय ले (ध्यान करे )। जहां पर अपने मन की स्थिरता होती हो। ( मन वचन काया के योग स्थिर रहते हों) जहां बहुत से जीवोंका घात न होता हो ऐसे स्थान में रह कर ध्यान करना चाहिए । ध्यान करने का समय भी यही है कि, जिस वक्त अपना योग स्थिर रहे वही समय उचित है बाकी ध्यान करने वाले के मन की स्थिरता रखने के लिए रात्रि या दिन का कुछ काल नियत नहीं है। शरीर की जिस अवस्था में जिनेश्वर भगवान का ध्यान किया जा सके उसी अवस्था में ध्यान करना योग्य है। इस विषय में सोते हुए, या बैठे हुए या खड़े हुए का कोई नियम नहीं है। देश, काल की चेष्टा से सर्व अवस्थाओं से मुनि जन उत्तम केवलज्ञानादि का लाभ प्राप्तकर पाप रहित बनें, इसलिए ध्यान करने में देश काल का भी किसी प्रकार का नियम नहीं है । जहां जिस सपय त्रिकर्ण योग स्थिर हो वहां उस समय ध्यान में प्रवर्तना श्रेयस्कर है।