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श्राद्धविधि प्रकरण खर्चमें कितनी एक छूट रखता है तब फिर देवपूजामें कितने द्रव्यका खच बढ़ जाता है ? या यथाशक्ति अपने घर मन्दिर में भी न खर्च सके। इसलिये अपने घर मन्दिरमें रख्खे हुए नैवेद्यादिक से मंगाए हुए पुष्पादिक द्वारा अपने घर मन्दिर में पूजा, पूर्वोक दोष लगनेका सम्भव होनेसे न करना। एवं अपने घरमन्दिर में चढ़ाए हुये नैवेद्यादिक बेचनेसे आया हुवा दव्य अपने घरमें अपने निश्रायसे भी न रखना तथा उसे ज्यों त्यों नहीं बेच डालना, यथाशक्ति से जो देवद्रव्यकी बृद्धि हो त्यों बेचना, सर्व प्रकारसे यत्न कर रखने पर भी कदापि किसी चोर या अग्नि प्रमुखसे वह विनाश हो जाय तो रखनेवाले को कुछ दोष नहीं लगता, क्योंकि अवश्य भावी भावको रोकनेमें कोई भी समर्थ नहीं । पर द्रव्यका अपने हाथसे उपयोग करनेका प्रसंग आ जावे तो दूसरेके समक्ष ही करना या दूसरेको विदित करके करना चाहिये ताकि कोई दोष लगनेका संभव न रहे।
देव, गुरु, यात्रा, तीर्थ, स्वामीवात्सल्य, स्नात्रपूजा महोत्सव, प्रभावना, सिद्धान्त लिखाना, पुस्तक लेना बगैरहमें खर्चनेके कारण निमित्त जो दूसरेका धन लेना हो तो बीचमें चार पांच जनोंको साक्षी रखकर लेना और वह खर्चनेके समय गुरु, संघ वगैरह के समक्ष स्पष्टतया कह देना कि यह दव्य अमुकका है या दूसरेका है, कहे विना न रहना। यदि विना कहे खर्चे तो उससे भी पूर्वोक्त दोष लगनेका सम्भव है।
तीर्थ पर गया हो, वहाँ पूजामे, स्नात्रमें, ध्वजा चढ़ानेमें पहरावनी में प्रभावना में वगैरह तीर्थ पर अवश्य कृत्योंमें दूसरेका दृष्य नहीं मिलाना। कदापि किसीने तीर्थ पर खर्चने के लिये दूव्य दिया हो और वह दूसरेका धन वहां पर खर्चना हो तो यह दूसरेका है प्रथमसे ही ऐसा कह कर बीचमें दूसरेको साक्षी रखकर उसे जुदा खर्चना, परन्तु अपने द्रव्य के साथ न खर्चना क्योंकि उसले लोकमें ब्यर्थ प्रशंसा करानेका दोष लगता है, और यदि पीछेसे किसीको मालूम हो जाय तो मायावी और लोकोपहास्य का पात्र बनना पड़ता है।
यदि किसी समय ऐसा प्रसंग आवे बहुतसे मनुष्य मिलकर स्वामीवात्सल्य, संघपूजा प्रभावना वगैरह करनी हो तो जितना जिसका हिस्सा ले वह सब पहिलेसे ही कह देना। यदि ऐसा न करे तो पुण्य. करनीके कार्यमें खर्चने में चोरी करनेके दोषका भागीदार बनता है। ___अन्तिम अवस्थामें आये हुए माता, पिता, बहिन, पुत्र, वगैरहके लिये जो खर्चना हो वह उनकी सावधानता में ही गुरु श्रावक या सगे सम्बन्धियोंके समक्ष ही कह देना कि हम तुम्हारे पुण्यार्थ इतने दिनमें इतना द्रव्य अमुक अमुक कार्य करके खचेंगे उसकी तुम अनुमोदना करभा, ऐसा कह कर वह संकल्पित द्रव्य ठहराई हुई मुद्दतमें सबके समक्ष उसका नाम देकर विदित करना कि, अमुक जनेके पीछे माना हुआ द्रव्य यह अमुक शुभकार्य में खर्चते हैं यदि ऐसा न करे तो उस पुण्य करनीमें चोरो गिनी जाती है। दूसरेके नाम पर किये हुए द्रव्यसे अपने नामसे यश प्राप्त करके पुण्य करनी करे तो भो महा अनर्थ होता है। पुण्यके कार्यमें जो कुछ चोरी की जाती है उससे बडे आदमीकी महत्ता गुणकी हानि होती है। जिसके लिये गणधर भगवानने कहा है :