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श्राद्धविधि प्रकरण तांबुल खानेसे, दिनमें सोनेसे और मैथुन सेवन करनेसे उपवासका फल नष्ट होता है। स्नान करना होतो भी जहां लोलफूल, शैवाल, कुथुजीव, बहुत न होते हों, जहां विषम भूमि न हो, जहां जमीनमें खोकलापन न हो, ऐसी जमीन पर ऊपरसे उड़कर आ पड़ने वाले जीवोंकी यातना पूर्वक प्रमाण किये हुये पानीसे छान कर स्नान करना। श्रावक दिनकृत्यमें कहा है कि,:
तस्साइजीवरहिए, भूमिभागे विसुद्धए।
फासुएणंतुनीरेण, इयरेण गलिएण भो॥ प्रसादि जीव रहित समतल पवित्र भूमि पर अवित्त और उष्ण छाने हुये प्रमाण वंत पानी से विधि पूर्वक स्नान करे। व्यावहारम कहा है कि
नग्नार्शमोषितायातः सचेलोभुक्तभूषितः । नैव स्नायादनुव्रज्य, बन्धून् कृत्वा च मंगलं ॥१॥ अज्ञाते दुष्पवेशे च, पलिनैषितेथवा ; तरुच्छन्ने सशेवाले, न स्नानं युज्यते जले ॥२॥ स्नानं कृत्वा जलः शीत, भोक्तुमुष्णं न युज्यते;
जलैरुष्णैस्तथा शीतं, तैलाभ्यंगश्च सर्वदा ॥३॥ नग्न होकर, रोगी होने पर भी, परदेशसे आकर, सब वस्त्र सहित, भोजन किये बाद, आभूषण पहन कर, और भाई आदि सगे संबंधीको मंगलनिमित्त बाहर जाते हुए को विदा करके वापिस आ कर तुरंत स्नान करना। अनजान पानीसे, जिसमें प्रवेश करना मुश्किल हो ऐसे जलाशयमें प्रवेश करना, मलिन लोगोंसे मलिन किये हुए पानीमें दूषित पानीसे और शेवाल या वृक्षके पत्तों, गुच्छोंसे ढके हुए पानीमें घुस कर स्नान न करना चाहिये। शीतल जलसे स्नान करके तुरंत उष्ण भोजन, एवं उष्ण जलसे स्नान कर के तुरंत शीतल अन्न न खाना चाहिये।
"स्नान करनेमें आगमचेति" स्नावस्य विकृताच्छाया, दंतघर्षः परस्पर; देहश्च शवगंधश्च न्मृत्युस्तहिवसस्त्रये ॥४॥ स्नानमात्रस्यचेच्छोशो, वक्षस्यहिन्दयेपि च ;
षष्ठे दिने तदा जयं, पंचत्वं नात्रसंशयः ॥५॥ स्नान करके उठे बाद तुरंत ही अपने शरीरकी कांति बदल जाय, परस्पर दांत घिसने लग जायं, और शरीरमेंसे मृतक के समान गंध आवे तो वह पुरुष तीसरे दिन मृत्यु को प्राप्त हो। स्नान किये बाद तुरंत ही यदि हृदय और दोनों पैरोंमें शोष होनेसे एकदम सूक जाय तो वह छठे दिन भरणके शरण होगा, इसमें संशय नहीं।