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श्राद्धविधि प्रकरण छीपमें, जोखमें, कीडोंमें; पतंगमें, मक्खीमें, भ्रमरमें, मत्स्यमें, कछुआमें, भैसोंमें, बैलोंमें ऊंटमें, खच्चरमें, घोडा में, हाथी वगैरहमें लाखों भव करके प्रायः सर्वभवोंमें शस्त्राघात वगैरहसे उत्पन्न होती महावेदनाको भोग कर मृत्यु पाया। ऐसे करते हुये जव उसके बहुतसे कर्म भोगनेसे खप गये तब वह वसन्तपुर नगरमें कोटीश्वर वसुदत्त शेठ और उसकी बसुमति स्त्रीका पुत्र बना; परन्तु गर्भमें आकर उत्पन्न होते ही उसके माता पिताका सर्व धन नष्ट हो गया और जन्मते ही पिताकी मृत्यु होगई। उसके पांचवें वर्ष माता भी चल बसी; इससे लोगोंने मिलकर उसका निष्पुण्यक नाम रक्खा । अब वह रंकके समान भिक्षुक वृत्तिसे कुछ युवावस्थाके सन्मुख हुवा; उस वक्त उसे उसका मामा मिला और वह उसे देख कर दया आनेसे अपने घर ले गया। परन्तु वह ऐसा कमनशीब कि, जिस दिन उसे मामा अपने घर ले गया उसी दिन रातको उसके घरमें चोरी हो गई और चोरीमें जो कुछ था सो सब चला गया। उसने समझा कि, इसके नामानुसार सब मुव यही अभागी है इससे उसे उसने अपने घरसे बाहर निकाल दिया। इसी तरह अब वह निःष्पुण्यक जहां जहां जिसके घर जाकर एक रात या एक दिन निवास करता है वहां पर चोर, अग्नि, राजविप्लव वगैरह कोई भी उपद्रव घरके मालिक पर अकस्मात आ पड़ता है, इससे उस निष्पुण्यक की निष्पुण्यकता मालूम होनेसे उसे धक्के मिलते हैं। ऐसा होनेसे झुझला कर लोगोंने मिल कर उसका मूर्तिमान उत्पात ऐसा नाम रख्खा । लोग आकर निन्दा करने लगनेसे यह विचारा दुखी हो कर देश छोड़ परदेश चला गया। तामलिप्ति पुरीमें आकर वह एक विनयधर शेठके घर नौकर रहा। वहां पर भी उसी दिन उस शेठका घर जलउठा। यह इस महाशयके चरणकमलोंका ही प्रताप है ऐसा जान कर उसे बाबले कुत्ते के समान घरमेंसे निकाल दिया। अन्यत्र भी वह जहां जहां गया वहां पर वैसे ही होने लगा इससे वह दुखी हो विवारेने लगा कि, अब क्या करू ! उदर पूरनाका कोई उपाय नहीं मिलता इससे वह अपने दुष्कर्मको निन्दा करने
लगा।
कम्यं कुणंति सवसा । तस्मृदयं मित्र परवसाळुन्ति ।
सुख्खं दुरुहइ सवसो । निवडेई परव्वसो तत्ती॥ जैसे वृक्ष पर चढने वाली वेल अपनी इच्छानुसार सुगमतासे चढ़ती है परन्तु जव वह गिरता है तब किसीका धक्का या आघात लगनेसे परवशतासे ही पड़ती है वैसे ही प्राणो जब कर्म करते हैं तब अपनी इच्छा नुसार करते हैं परन्तु जब उस कर्मका उदय आता है तब परवशतासे भोगना पड़ता है। वैसे ही निष्पुण्यक मनमें विचारने लगा कि, इस जगह मुझे कुछ भी सुखका साधन नहीं मिल सकता; इसलिये किसी अन्य स्थान पर जाऊ जिससे मुझे कुछ आश्रय मिलनेसे मैं सुखका दिन भी देख सकू। यह बिचार कर वहां पास रहे हुए समुद्रके किनारे गया । उस वक्त वहांसे एक जहाज कहीं परदेशमें लंबी मुशाफरी के लिए जाने वाला था। उस जहाजका मालिक धनावह नामक सेठ था उसने उस निष्पुण्यक को नौकरतया साथमें ले लिया । जहाज समुद्र मार्गसे चल पड़ा और सुदैवसे जहां जाना था अन्तमें वहां जा पहुंचा । निष्पुण्यक बिचारने लगा कि, सचमुच हो मेरा भाग्योदय हुबा कि जो