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'श्राद्धविधि प्रकरण बांधना, रांधना, भोजन करना, कुछ भी घर सम्बन्धी क्रिया करना, गाली देना, वैद्यक करना, व्यापार करना, पूर्वोक्त कार्यों में से मन्दिर में कोई भी कार्य करना उसे अनुचित प्रवृत्ति नामक आशातना कहते हैं । इसे त्यागना योग्य है।
ऊपर लिखी हुई सर्व प्रकारकी आशातनाके विषयोंमें अत्यन्त लोभी, अविरति, अप्रत्याख्यानी, ऐसे देवता भी वर्जते हैं, इसलिए कहा है कि:---
देव हरयंमि देवा विसयविस । विमोहि आवी न कयावि ॥
अच्छर साहि पिस पहा । संखिड्डाईवि कुणन्ति ॥ विषय रूप विषसे मोहित हुये देवता भी देवालयमें किसी भी समय आशातनाके भयसे अप्सराओंके साथ हास्य, विनोद नहीं करते।
"गुरुकी ३३ आशातना" १ यदि गुरुके आगे चले तो आशातना होती है; क्योंकि मार्ग बतलाने वगैरह किसी भी कार्यके बिना
गुरुके आगे चलनेसे अविनय का दोष लगता है। २ यदि गुरुके दोनों तरफ बराबरमें चले तो अविनीत ही गिना जाय इसलिए आशातना होती है। ३ गुरुके नजीक पीछे चलनेसे भी खांसी छींक वगैरह आवे तो उससे श्लेष्म आदिके छींटे गुरुपर
लगनेके दोषका संभव होनेसे आशातना होती है।। ४ गुरुकी ओर पीठ करके बैठे तो अविनय दोष लगनेसे आशातना होती है। ५ यदि गुरुके दोनों तरफ बराबरमें बैठे तो भी अविनय दोष लगनेसे आशातना समझना । ६ गुरुके पीछे बैठनेसे थूक श्लेष्मके दोषका संभव होनेसे आशातना होती है । ७ यदि गुरुके सामने खड़ा रहे तो दर्शन करने वालेको हरकत होनेसे आशातना समझना । ८ गुरुके दोनों तरफ खड़ा रहनेसे समासन होता है अतएव यह अविनय है इसलिये आशातना
समझना। गुरुके पीछे खड़ा रहनेसे थूक, श्लेष्म लगनेका संभव होनेसे आशातना होती है। १. आहार पानी करते समय यदि गुरुसे पहले उठ जाय तो आशातना गिनी जाती है। ११ गमनागमन की गुरुसे पहले आलोचना ले तो आशातना समझना। १२ रात्रिको सोये बाद गुरु पूछे कि कोई जागता है ? जागृत अवस्थामें ऐसा सुनकर यदि आलस्यस
उत्तर न दे तो आशातना लगती है। १३ गुरु कुछ कहते ही हों इतनेमें ही उनसे पहले आप ही बोल उठे तो आशातना लगती है। १४ आहार पानी लाकर पहले दूसरे साधुओंसे कहकर फिर गुरुसे कहे तो आशातना लगती है।। १५ आहार पानी लाकर पहले दूसरे साधुओंको दिखला कर फिर गुरुको दिखलावे तो आशातन
लगती हैं।