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श्राद्धविधि मकरण
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किन्तु अन्य धोतीके समान मलमूत्र अशुचि स्पर्श वर्जने विकी युक्तिसे देवपूजामें धारण करना, अर्थात् वेबपूजाके उपयोग में आनेवाले वस्त्र देवपूजा सिवाय अन्य कहीं भी उपयोग न लेना, देवपूजके वस्त्रोंको बारंबार धोने धूप देने वगैरह युक्तिसे सदैव साफ रखना तथा उन्हें थोड़े ही टाइम धारण करना । एवं पसीना, श्लेष्म थूंक, खंखार, वगैरह उन वस्त्रोंसे न पोछना; तथा हाथ, पैर, मुख, नाक, मस्तक भी उनसे न पोछना । उन वस्त्रोंको अपने सांसारिक कामके वस्त्रोंके साथ या दूसरे वाल, बृद्ध, स्त्री आदिके वस्त्रोंके साथ न रखना, तथा दूसरेके वस्त्र न पहनना । यदि वारंवार पूजा वस्त्रोंको पूर्वोक्त युक्तिसे न संभाला जाय तो अपित्र होनेके दोषका संभव है।
इस विषय पर दृष्टान्त सुना जाता है कि, कुमारपाल राजाने प्रभुकी पूजाके लिये नवीन वस्त्र मांगा उस वक्त मंत्री बाहड अंबडके छोटे भाई वाहडने संपूर्ण नया नहीं परन्तु किंचित् वर्ता हुवा वस्त्र ला दिया । उसे देख राजाने कहा नहीं नहीं ! पुराना नहीं चाहिए । किसीका भी न वर्ता हुवा ऐसा नवीन ही वस्त्र प्रभुकी पूजाके लिए चाहिये, सो ला दो। उसने कहा कि, महाराज ! ऐसा साफ नया वस्त्र तो यहां पर मिलता ही नहीं । परन्तु सवालाख द्रव्यके मूल्यसे नया वस्त्र बंबेरा नगरीमें बनता है, पर वहांका राजा उसे एक दफां 'पहनकर बाद ही यहां भेजता है । यह बचन सुनकर कुमारपाल राजाने बंबेरा नगरीके अधिपतिको सवालाख द्रव्य देना बिदित कर बिलकुल नया वस्त्र भेजनेको कहलाया । परन्तु उसने नामंजूर किया। इससे कुमारपाल 'राजाको बड़ा बुरा मालूम दिया। कोपायमान हो कुमारपालने चाहडको बुलाकर कहा कि, अपना बड़ा सैन्य लेकर तू बंबरे नगर में जाकर जय प्राप्त कर वहांके पटोलके कारीगरोंको ( रेशमी कपड़े बुनने वालोंको ) यहां ले आ । यद्यपि तू दान देनेमें बड़ा उदार है तथापि इस विषय में विशेष खर्च न करना । यह वचन अंगीकार कर वहांसे बड़ा सैन्य साथ ले तीसरे प्रयाण में चाहड बंबेरा नगर जा पहुंचा। बंबेशके स्वामीने उसके पास लाख द्रव्य मांगा; परन्तु कुमारपालकी मनाई होनेसे उसने देना मंजूर न किया और अन्त में वहां के राज भंडाके द्रव्यको व्यय कराकर ( जिसने जैसे मांगा उसे वैसे देकर ) चौदहसो सांडणीयोंपर चढे हुवे दो दो शस्त्रधारी सुभटोंको साथ ले अकस्मात रात्रि के समय बंबेरा नगरको वेष्टित कर संग्राम करनेका विचार किया परन्तु उस रातको वहांके नागरिक लोकोंमें सातसौ कन्याओं का विवाह था यह खबर लगने से उन्हें विघ्न हो, उस रात्रीको विलंब कर सुबहके समय अपने सैनिक बलसे उसने वहांके किलेका चुरा २ कर डाला। और किलेमें घुसकर वहांके अधिपतिका दरबारका गढ ( किला) अपने ताबे किया । तदनंतर अपने राजा कुमारपालकी आज्ञा मनवाकर वहांके खजाने मेंसे सात करोड़ सुवर्ण महोरें और ग्यारह सो घोड़े तथा सातसौ कपड़े बुनने वालोंको साथ ले बड़े महोत्सव संहित पाटण नगर में आकर कुमारपाल राजाको नमस्कार किया । यह व्यतिकर सुनकर कुमारपालने कहा "तेरी नजर बड़ी है वह बड़ी ही रही, क्योंकि, तू ने मेरेसे भी ज्यादह खर्च "किया; यदि मैं स्वयं गया होता तो भी इतना खर्च न होता ।" यह वचन सुनकर चाहड बोला- "महाराज ! ओखर्चमा उससे आपकी ही बड़ाई मैंने जो खर्च किया है सो आपकेही बलसे किया है, क्योंकि बड़े ..स्वामीका कार्य भी बड़ेही खर्चसे होता है । जो खर्च होता है उसीसे बड़ोंकी बड़ाई है। मैंने जो सर्च किया
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