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श्राद्धविधि प्रकरण कुसुमख्खय गन्धपईव । धूव नैवेज फलजलेहि पुणो॥ अठविह कम्पहणनीं। अठ्वयारा हवइ पूना ॥२॥ सव्वो बयारपूमा । न्हवणचण वच्छ भूसणाईहिं॥
फलवलि दीवाइ नट्ट । गोत्र भारत्तो पाइहिं ॥३॥ (१) पंच उपचारकी पूजा, (२) अष्ट उपचारकी पूजा, और रिद्धिवन्तको करने योग्य (३) सर्वोपचारकी पूजा, ऐसे तीन प्रकारकी पूजा शास्त्रोंमें बतलाई है।
"पंचोपचारकी पूजा" पुष्प पूजा, अक्षत पूजा, धूप पूजा, दीप पूजा, चन्दन पूजा, ऐसे पंचोपचारकी पूजा समझना चाहिये।
"अष्टोपचारकी पूजा" जल पूजा, चन्दन पूजा, पुष्प पूजा, दीप पूजा, धूप पूजा, फल पूजा, नैवेद्य पूजा, अक्षत पूजा, यह अष्ट प्रकारके कर्मोको नाश करने वाली होनेसे अष्टोपवारिकी पूजा कहलाती है।
"सर्वोपचारकी पूजा" जल पूजा, चन्दन पूजा, वस्त्र पूजा, आभूषण पूजा, फल पूजा, नैवेद्य पूजा, दीप पूजा, नाटक पूजा, गीत पूजा, वाद्य पूजा, आरती उतारना, सत्तर भेदी प्रमुख पूजा, यह सर्वोपचारकी पूजा समझना । ऐसे बृहद् भाष्यमें ऊपर बतलाये मुजव तीन प्रकार की पूजा कही है तथा कहा है कि
पूजक स्वयं अपने हाथसे पूजाके उपकरण तयार करें यह प्रथम पूजा, दूसरेके पास पूजाके उपकरण तयार करावे यह दूसरी पूजा और मनमें स्वयं फल, फूल, आदि पूजा करनेके लिए मंगानेका विचार करने रूप तीसरी पूजा समझना। अथवा और भी ये तीन प्रकार है, करना, कराना, और अनुमोदन करना तथा
ललितविस्तरा (नुथ्थुणंकी वृत्ति ) में कहा है किः -पूअंमि पुप्फामि सथुई। पडिवत्तिभे अयो चउविहपि ।। जहासत्ती एकुज्जा। पुष्पामिषस्तोत्रपतिपत्ति पूजानां यथोतर प्रथान्यमित्युक्त । तत्रमिषं प्रधानामशनादिभोग्यवस्तुः ॥ उक्त गौड शास्त्रे । पललेनला आमिषं भोग्यवस्तुनि प्रतिपत्तिः॥ पूजामें पुष्प पूजा, आमिष (नैवेद्य ) पूजा, स्तुति, गायन, प्रतिपत्ति, आशाराधन या विधि प्रतिपालन ) ये चार वस्तु यथोत्तर अनुक्रमसे अधिक प्रधान हैं। इसमें आमिष शब्दसे प्रधान अशनादि भोग्यवस्तु समझना। इसके लिये गौड शास्त्रमें लिखा हुवा है कि आमिष शब्दसे मांस, स्त्री, और भोगने योग्य अशनादिक वस्तु समझना।
"तिपत्तिः पुनरविकलाप्तोपदेशपरिपालना” प्रतिपत्ति सर्वज्ञके बवनको यथार्थ पालन करना। इसलिए आगममें पूजाके भेद चार प्रकारसे भी कहे हैं।
जिनेश्वर भगवानकी पूजा दो प्रकारकी है एक द्रव्यपूजा और दूसरी भावपूजा। उसमें द्रव्यपूजा शुभ द्रव्यसे पूजा करना और भावपूजा जिनेश्वर देवकी आज्ञा पालन करना है। ऐसे दो प्रकारकी पूजामें सर्व