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श्राद्धविधि प्रकरण
काय कंडुयं वज्जं । तहाखेल विगिंचां ॥ थुइथुत्त भणां च । पुत्र' तो जग बंधुणो ॥ १ ॥
जगद्बन्धुप्रभु की पूजा करते वक्त या स्तुति स्तोत्र पढते हुए अपने शरीरमें खुजली या मुखसे थूक खंकार डालना आदि, आसातनाके कारण वर्जना ।
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देवपूजाके समय मुख्यवृत्तिसे तो मौन ही रहना चाहिये, यदि वैसा न बन सके तो भी पाप हेतुक बचन तो सर्वथा त्यागना चाहिये। क्योंकि 'निःसहि' कहकर वहांसे घरके व्यापार भी त्यागे हुए हैं इसलिए वैसा करनेसे दोष लगता हैं। अतः पाप हेतुक कायिक संज्ञा ( हाथका इसारा या नेत्रोंका मटकाना ) भी वर्जना चाहिये ।
"देव - पूजा के समय संज्ञा करने से भी पाप लगता है तिसपर जिनहांकका
दृष्टान्त"
धौलका निवासी निहांक नामक श्रावक दरिद्रपनसे घी तेलका भार वहन कर आजीविका चलाता था। वह भक्तामर स्तोत्र पढ़नेका पाठ एकाग्र चित्तसे करता था। उसकी लवलीनता देखकर चक्रेश्वरी देवीने प्रसन्न होकर उसे एक वशीकरण कारक रत्न दिया, उससे वह सुखी हुआ। उसे एकदिन पाटन जाते हुए मार्ग में तीन प्रसिद्ध चोर मिले, उन्हें रत्नके प्रभावसे वश कर मार पीटकर वह पाटन आया। उस वक्त वहांके भीमदेव राजाने वह आश्चर्य कारक बात सुनकर उसे बुलाकर प्रसन्न हो बहुमान देकर उसके देहकी रक्षा निमित्त उसे एक तलवार दी । यह देख ईर्षासे शत्रुशल्य नामक सेनापति बोला कि “महाराज !
खाडा तास समपि जसु खाडे अभ्यास ॥ जिगहाणेतो दीजिए तोला चेल कपास १
जिगहा- सिधर धनुधर कुन्तधर सक्तिधरा सबकोय ॥
शत्रुशा रण शूर नर जननी विरल ही होय ।। २ ॥ अश्वं शस्त्रं शास्त्रं । वीणावाणी नरश्च नारी च ॥ पुरुष विशेषे प्राप्ता । भवन्ति योग्या अयोग्याश्च ॥ ३ ॥
घोड़ा, शस्त्र, शास्त्र, वीणा, वाणी, पुरुष, नारी, इतनी वस्तुयें यदि अच्छेके पास आवें तो अच्छी बनतीं हैं और खराबके पास जायें तो खराब फल पाती हैं। उसके ऐसे बचन सुनकर प्रसन्न हो राजाने जिनहाकको सारे देशकी कोतवाल पदवीसे विभूषित किया। जिनहाकने भी ऐसा पराक्रम बतलाया कि, सारे देशमें चोरका नाम तक न रहने दिया । एक समय सोरठ देशका चारण जिनहाककी परीक्षा करनेके लिए पाटनमें आया । उसने उसी गांव मेंसे ऊंटकी चोरी कर अपने घासके बनाये हुए झोंपड़े के आगे ला बाँधा । अन्तमें कोतवालके सुभट पता लगनेसे उसे पकड कर जिनहाकके पास लाये। उस समय जिनहाक देवपूजा करनेमें गहुवा होने से मुखसे कुछ न बोला परन्तु अपने हाथमें फूल ले मसलकर सुभटोंको इसारेसे जतलाया कि, इसे मारडालो । सुभट भी उसे लेजाने लगे, उस वक्त चारण बोलने लगा कि
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