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श्राद्धविधि प्रकरण
"अशन, पान, खादिम, स्वादिमका स्वरूप” -१ अशन -अन्न, पक्वान, मंडा, सत्तू , वगैरह जिले खानेसे क्षुधा शांत हो वह अशन कहलाता है। • २ पान- छास, मदिरा, पानी ये पान कहलाते हैं। ३खादिम–सर्व प्रकारके फल, मेवा, सुखड़ी, इक्षु वगैरह खादिम कहलाते हैं। ..
४ स्वादिम-सूठ, हरडे, पीपर, कालोमिरच, जीरा, अजवायन, जायफल, जावंत्री, कषेल, कत्था, खैरसाल, मुलहटी, दालचीनी, तमालपत्र, इलायची, लौंग, कूट, वायविडंग, बीडलवण, अजमोद, कुलंजन, पीपलीमूल, वणकबाव, कपुरा, मोथा, कपूर, संचल, बड़ी हरडे, बेहडा, कैंत, घव, खैर, खिजडा, पुष्करमूल, धमासा, बावची, तुलसी, सुपारी, वगैरह वृक्षोंकी छाल और पत्र। ये भाष्य तथा प्रवचन सारोद्धार आदिके अभिप्रायसे स्वादिम गिने जाते हैं, और कल्प व्यवहारकी वृत्तिके अभिप्रायसे खादिम गिने जाते हैं। कितनेक आचार्य यही कहते हैं कि अजवायन खादिम ही है। .. - सर्व जातिके स्वादिम, इलायची, या कपूरसे वासित किये हुये पानीको दुविहारके प्रत्याख्यानमें ग्रहण किया जा सकता है। सौंफ, सुवा, आमलकंठी, आमकी गुठली, कैतपत्र, नींबूपत्र आदि खादिम होनेसे भी दुविहारमें नहीं ली जा सकती। तिविहारमें तो सिर्फ पानी हो खुला रहता है । परन्तु कपूर, इलायची, कत्था, खैरसाल, सेल्लक, वाला, पाडल, वगैरहसे सुवासित किया पानी नितरा हुवा और छाना हुवा हो तो खप सकता है, परन्तु बगैर छाना न खपे । यद्यपि कितने एक शास्त्रोंमें मधू, गुड़, शक्कर, खांड, बतासा, स्वादिम तया गिनाये हुए हैं । और द्राक्षका पानी, शक्करका पानी, एवं छास, पाणकमें (पानीमें ) गिनाये हुये हैं। तथापि ये दुविहार आदिमें नहीं खप सकते ऐसा व्यवहार है। नागपुरीय गच्छके किये हुये भाष्यमें कहा है कि,
दख्खापाणइयं पाणं तह साइयं गुडाइमं ॥
पठि सुमि तहविहु । तिशि जणगं ति नायरियं ॥ द्राक्षका पानी और गुड वगैरहको स्वादिमतया सिद्धान्तमें कहा है । तथापि वह तृप्ति करने वाला होनेसे उसे अंगीकार करनेकी आज्ञा नहीं दी गई है। ...... - स्त्री संभोग करनेसे चोविहार भंग नहीं होता परन्तु स्त्री या बालक आदिके होंठ चूसनेसे चोविहार भंग होता है । दुविहार करने वाले को ही चुंबन खुला है । जैसे कि, जो प्रत्याख्यान है वह लोम आहार ( शरीर की त्वचासे शरीर पोषक आहारका प्रवेश होना) से नहीं, किन्तु सिर्फ कवलाहार कर मुखमें ( आहार प्रवेश करनेका ) करनेका ही प्रत्याख्यान किया जाता है। यदि ऐसा न हो तो उपवास, आंबिल और एकासनमें भी शरीर पर तेल मर्दन करनेसे या गांठ गुमडे पर आटेकी पुलसट आदि बांधनेसे भी प्रत्यख्यान भंग होनेका प्रसंग आयेगा, परन्तु ऐसा व्यवहार नहीं है। तथा लोम आहारका तो निरंतर ही संभव होता है, इससे प्रत्यख्यान करनेके अभावका प्रसंग आयेगा। (स्नान करनेसे और हवा खानेसे भी शरीरको सुख मिलता है और वह लोम आहार गिना जाता है)।