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श्राद्धविधि प्रकरण बन सके तो भंतमें सूतकी नवकार वाली से भी संघ पूजा करने का, प्रतिवर्ष प्रभाबना कर के या पोषा करने वालों को जिमा के या कितने एक श्रावकों को जिमा कर यथा शक्ति साधर्मिक वात्सल्य हरनेका या प्रतिवर्ष दोन, हीन, दुःखित श्रावक का यथा शक्ति उद्धार करने का प्रतिदिन कितने एक लोगस्सका कायोत्सर्ग करनेका, नवीन ज्ञान के अभ्यास करने का, या वैसा बन सके तो तीनसौ आदि नवकार गिनने का निरन्तर दिन में नोकारसी वगैरहं और रात्रि को दिवसचरिम (चौविहार ) आदि प्रत्याख्यानके करनेका, दो दफा (सुबह शाम ) प्रतिक्रमण करनेका, जबतक दीक्षा अंगीकार न की जाय तबतक अमुक वस्तु खानेका इत्यादि सबका नियम रखना चाहिये। ___ तदनन्तर ज्यों बने त्यों यथाशक्ति श्रावकके बारह व्रत अंगीकार करने चाहियें, उस में सातवें भोगोपभोग व्रतमें सचित्त, अचित्त, मिश्र वस्तु का यथार्थ स्वरूप जानना चाहिये।
"सचित्त अचित्त मिश्र वस्तुओंका स्वरूप” । प्रायः सब प्रकारके धान्य, धनियां, जीरा, अजवायन, सोंफ, सुया, राई, खसखस, आदि सर्व जातिके दाने सर्व जातिके फल, पत्र, नमक, क्षार, लाल सेंधव, संचल, मट्टी, खड़ी, हिरमिजी, हरी दतवण, ये सब व्यवहार से सवित्त जानना । पानी में भिगोये हुये वणे, गेहूं, वगैरह कण तथा मूग उड़द चणे आदिकी दाल भी यदि पानोमें भिगोई हो तो मिश्री समझना, क्योंकि कितनी एक दफा भिगोई हुई दाल वगैरह में थोड़े ही समय बाद अंकूर फूटते हैं । एवं पहले नमक लगाये बिना या बकाये बगैर या रेती विना शेके हुये चणे, गेहू, ज्वार वगैरह धान्य, खार आदि दिये विनाके शेके हुये तिल, होले, पोख, शेकी हुई फली, एवं कालीमिरच, रा,ई हींग, आदिका छोंक देनेके लिये, रांधा हुवा खीरा, ककड़ी तथा सचित्त बीज हों जिसमें ऐसे सर्व जातिके पके हुये फल इन सबको मिश्र जानना । जिस दिन तिलसक्री बनाई हो उस दिन मिश्र सम. झना । यदि रोटी, पुरी, वगैरह में जो तिलवट डालकर सेकी हुई हो तो वह रोटी आदि दो घड़ीके बाद अचित्त समझना । दक्षिण देशमें या मालवा आदि देशों में बहुतसा गुड़ डालकर तिलवट को बहुत सेक डालते हैं इससे उसे अवित्त गिनने का व्यवहार है । वृक्षसे तत्काल निकला, लाख, गोंद, रताख, छाल, तथा नारियल, नीबू, जामुन, आंब, नारंगी, अनार, ईख, वगैरह का तत्कालिक निकाला हुवा रस या पानी, तत्काल निकाला हुया तिल वगैरहका तेल, तत्काल फोड़े हुये नारियल, सिंगाड़े, सुपारी, प्रमुखफल, तत्काल बीज निकाल डाले हुये पके फल, बहुत दबाकर कणिकारहित किया हुवा जीरा, अजवायन वगैरह दो घड़ी तक मिश्र समझना । तदनंतर अचित्त होते है, ऐसा व्यवहार है । अन्य भी कितने एक प्रबल अग्निके योग बिना प्रायः जो अवित्त किये हुवे होते हैं उन्हें भी दो घडी तक मिश्र और उसके बाद अचित समझने का व्यवहार है। जैसे कि कच्चा पानी, कच्चा फल, कच्चा धान्य, इन्हें खूब मसलकर नमक डालकर खूब मर्दन किया हो तथापि अग्नि वगैरह प्रबल शस्त्रके बिना अचित्त नहीं होता इस विषयमें भगवती सूत्रके ८१ वें शतकमें तीसरे उद्देशमें कहा हुवा है कि "वज्रमय शिलापर वज्रमय पीसनेके पथ्थरसे पृथ्वीकायके खंडको बलवान पुरुष ८१ दफा जोरसे पीसे तथापि कितने एक जीव पीसे और कितने एक जीवोंको खबर तक