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श्राद्धविधि प्रकरण नहीं पड़ी" ( इस प्रकार का सूक्ष्म पना होता है, इसलिए प्रवल अग्निके शस्त्र विना वह अवित्त नहीं होता) सौ योजनसे आई हुई हरडे, छुवारे, लालद्राक्ष किसमिस, खजूर, कालीमिरच, पीपल, जायफल, बादाम, वायविडंग, अखरोट, तीलजां, जरदालु, पिस्ते, चणकयोबा; ( कबाब चिनी ) फटक जैसा उज्वल सिंधव आदि क्षार, बीडलवण (भट्ठीमें पकाया हुवा ), बनावटसे बना हुवा हरएक जातिका क्षार, कुंभार द्वारा मर्दन की हुई मट्टी, इलायची, लवंग जावंत्री, सूकी हुई मोथ, कौंकण देश के पके हुवे केले, उबाले हुये सिंगाडे, सुपारी आदि सर्व अचित्त समझना ऐसा व्यवहार है । व्यवहार सूत्रमें कहा है:
जोयण सयंतु गंतु । अणाहारेण भंडसकतीं।
वायागणि धुमेण्य । विद्धथ्थं होइ लोणाई ॥१॥ नमक वगैरह सचित्त वस्तु जहां उत्पन्न हुई हो वहांसे एकसो योजन उपरान्त जमीन उल्लंघन करने पर वे आपसे आप ही अचित बन जाती हैं। यदि यहांपर कोई ऐसी शंका करे कि, किसी प्रवल अग्निके शस्त्र विना मात्र सौ योजन उपरांत गमन करनेसे ही सचित वस्तु अचित किस तरह हो सकती हैं ? इस का उत्तर यह है कि, जिस स्थानमें ज जो जीव उत्पन्न होते हैं वे उस देशमें ही जीते हैं, वहांका हवा पानी बदलनेसे वे विनाशको प्राप्त होते हैं । एवं मार्गमें आते हुए आहारका अभाव होनेसे अधित होजाते हैं। उनके उत्पत्ति स्थानमें उन्हें जो पुष्टि मिलती है वह उन्हें मार्गमें नहीं मिलती, इससे अचित्त हो जाते हैं। तथा एक स्थानसे दूसरे स्थानमें डालते हुये, पारस्परिक अथडाते हुये, डालते हुये उथल पुथल होनेसे वे सब वस्तुयें सचित्तसे अवित हो जाती हैं । सौ योजनसे आते हुये बीचमें अति पवनसे, तापसे, एवं धूम्र वगैरहसे भी वे सब वस्तुयें अवित हो जाती हैं।
"सर्व वस्तुको सामान्यसे बदलनेका कारण
आरूहणे ओहहणे । निसिअणे गोणाईणं च गाउभ्हा ॥
6. भूमाहारच्छेए । उपक्कमेणं च परिणामो ॥१॥ गाड़ीपर या किसी गधे, घोड़े, बैलकी पीठ पर वारंवार चढाने उतारने से या उन वस्तुओंपर दूसरा भार रखने से या उन पर मनुष्यों के चढने बैठने से या उनके आहार का विच्छेद होनेसे उन क्रियाणा रूप वस्तुओंके परिणाममें परिवर्तन होता है। ...जब उन्हें कुछ भो उपकर ( शत्र) लगता है उस वक्त उनका परिणामान्तर होता है । वह शस्त्र तीन प्रकारका होता है । स्वकाय शस्त्र, २ परकाय शस्त्र, ३ उभयकाय शस्त्र, । स्त्रकाय शस्त्र जैसे कि, खारा पानी मीठे पानीका शस्त्र, काली मिट्टी पीली मिट्टीका शस्त्र, परकाय शस्त्र जैसे कि, पानीका शस्त्र अग्नि और अग्निका शस्त्र पानी । उभयकाय शस्त्र-जैसे कि, मिट्टीमें मिला हुवा पानी निर्मल जलका शस्त्र, इस प्रकार सचित्त को अचित्त होनेके कारण समझना । कहा है कि:
उप्पल पउमाइपुण, उन्हें दिन्नाई जाम न धरति,