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श्राद्धविधि प्रकरण
तत्काल ही भक्तिभाव पूर्वक नमस्कार कर उन्हें अपना सर्व वृत्तांत कह सुनाया । केवली महाराज ने कहा"यह सब कुछ पूर्वभव के पाप कर्म का विपाकोदय होने से ही हुवा है।" मुझे किस कर्म का विपाकोदय हुवा है ? यह पूछने पर ज्ञानी गुरु बोले- तू सावधान होकर सुन
• पहले तेरे जितारी के भव से भी पूर्व में किसी भवमें तू भद्रक प्रकृतिवान और न्यायनिष्ट श्री नामक गांव में ग्रामाधीश एक ठाकुर था, तुझे तेरे पिता ने अपना छोटा राज्य समर्पण किया था। तेरा आतंकनिष्ट नामक एक सौतिला छोटा भाई था, वह प्रकृति से बड़ा क्रूर था, उसे कई एक गांव दिये गए थे। अपने गांव से दूसरे गांव जाते हुए एक समय आतंकनिष्ट तुझे तेरे नगर में मिलने के लिए आया । तू ने उसे प्रेम पूर्वक बहुमान दे कितने एक समय तक अपने पास रक्खा। एक दिन प्रसंगोपात हंसी में ही तू ने उसे कहा कि, तू कैसा कैदी के समान मेरे पास पकड़ाया है, अब तुझे मेरे रहते हुए राज्यकी क्या चिंता है ? अभी तू यहां ही रह! क्योंकि बड़े भाई के बैठे हुए छोटे भाई को क्लेश कारक राज्य की खटपट किस लिए करना चाहिए ? सौतेले भाई के पूर्वोक्त वचन सुनते ही वह भीरु होने के कारण मन में विचारने लगा कि, अरे ! मेरा राज्य तो गया ! हा! हा ! बड़ा बुरा हुआ कि जो मैं यहां पर आया । हाय अब मैं क्या करूगा ? मेरा राज्य मेरे पास रहेगा या सर्वथा जाता ही रहेगा ! इस प्रकार आकुल व्याकुल होकर वह बार २ उस बड़े भाई के पास अपने गांव जाने की आज्ञा मांगने लगा। जब उसे स्वस्थान पर जाने की आज्ञा मिली उस वक्त वह प्राणदान मिलने समान मानकर वहां से शीघ्र ही अपने गांव तरफ चल पड़ा। जिस वक्त तूं ने उसे पूर्वोक्त वचन कहे उस समय पूर्वभव में तू ने यह निकाबित कर्मबंधन किया था। बस उसी के उदय से इस समय तेरा राज्य दूसरे के हाथ गया है। जिस तरह वानर छलांग चूकने से दीन बन जाता है वैसे ही प्राणी भी संसारी क्रिया कर कर्मबंधन करता है और वह उस वक्त बड़ा गर्वित होता है परन्तु जब उस कर्मबंध का उदय आता है तब सचमुच ही वह दीन बन जाता है।
यद्यपि उस चन्द्रशेखर राजा का तमाम दुराचरण सर्वज्ञ महात्मा जानते थे तथापि न पूछने के कारण उन्होंने इस विषय में कुछ भी न कहा। बालक के समान अपने पिता मृगध्वज केवली के पैरों में पड़ कर शुकराज कहने लगा- ' - " हे स्वामिन्! आपके देखते हुए यह राज्य दूसरे के पास किस तरह जाय ! धन्वंतरी वैद्य के मिलने पर रोग का उपद्रव किस तरह टिक सकता है ? आंगन में कल्पवृक्ष होने पर घर में दरिद्रता किस प्रकार रह सकती है ? सूर्योदय होने पर क्या अंधकार रह सकता है ? इसलिए हे भगवान् ! कोई ऐसा उपाय बतलाओ कि जिस से मेरा कष्ट दूर हो। ऐसी अनेक प्रार्थनायें करने पर केवली बोले- "चाहे जैसा दुःसाध्य कार्यं हो तथापि वह धर्मक्रिया से सुसाध्य बन सकता है, इसलिए यहां पर नजदीक में ही विमलाबल नामा • तीर्थ पर विराजमान श्री ऋषभदेव स्वामी की भक्ति सहित यात्रा करके उसी पर्वत की गुफा में सर्व कार्यों की सिद्धि करने में समर्थ पंचपरमेष्टी नमस्कार मंत्र का पट मास तक ध्यान कर ! इससे तेरे शत्रु का कपट जाल - - खुला हो जाने से वह अपने आपही दूर हो जायगा । गुफा में रह कर ध्यान करते समय जब तुझे विस्तृत होता हुवा तेज पुंज कपटतया मालूम दे उस वक्त तू अपना कार्य सिद्ध हुवा समझना। दुजय शत्रु को भी जीतने