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श्राद्धविधि प्रकरगा इसलिए इन्हें अणुव्रत कहते हैं और इसके त्यागने वाले को व्रतश्रावक कहते हैं) इस व्रतश्रावक के संबंध में सुन्दरकुमार सेठ की पांच स्त्रियों का वृत्तांत जानने योग्य होने से यहां दृष्टांत रूप दिया जाता है। ___एक समय सुन्दरकुमार शेठ अपनी पांचों स्त्रियों की परीक्षा करने के लिए गुप्त रहकर किसी छिद्र में से उनके चरित्र देखता था। इतने में ही गोचरी फिरता हुवा वहां पर एक मुनि आया। उसने उपदेश करते हुए स्त्रियों से कहा कि यदि तुम हमारे पांच वचन अंगीकार करो तो तुम्हारे सब दुःख दूर होंगे। ( यह बात गुप्त रहे हुए सुन्दर सेठ ने सुनी । इसलिए वह मनमें विचार करने लगा कि, यह तो कोई उलंठ मुनि मालूम पड़ता है, क्योंकि जब मेरी स्त्रियों ने अपना दुःख दूर होने का उपाय पूछा तब यह उन्हें वचन में बांध लेना चाहता है। इसलिए इस उल्लंठ को मैं इसके पांचों अंगों में पांच २ दंडप्रहार करूगा) स्त्रियों ने पूछा कि-"महाराज आप कौन से पांच वचन अंगीकार कराना चाहते हैं ?" मनि ने कहा-"पहला तम्हें किसी मी त्रस (हल. चल सकने वाले ) जीव को जीवनपर्यंत नहीं मारना, ऐसी प्रतिज्ञा करो। उन पांचों स्त्रियों ने यह पहला व्रत अंगीकार किया। (यह जान कर सुन्दरकुमार विचारने लगा कि यह तो कोई उल्लंठ नहीं मालूम देता, यह तो कोई मेरी स्त्रियों को कुछ अच्छी शिक्षा दे रहा है। इससे तो मुझे भी फायदा होगा, क्योंकि प्रतिज्ञा के लिए ये स्त्रियां किसी समय भी मुझे मार न सकेंगी। अतः इस से इस ने मुझ पर उपकार ही किया है । इसके बदले में मैंने जो इसे पांच दंड प्रहार करने का निश्चय किया है उनमें से एक २ कम कर दूंगा यानी चार चार ही मारूंगा) मुनि बोला-दूसरा तुम्हें कदापि झूठ न बोलना चाहिये ऐसी प्रतिज्ञा लो ! उन्होंने यह मंजूर किया। (इस समय भी सेठ ने पूर्वोक्त युक्ति पूर्वक एक एक दंडप्रहार कम करके तीन तीन ही मारने का निश्चय किया) मुनि बोला कि "तीसरे तुम्हें किसी भी प्रकार की चोरी न करना ऐसी प्रतिज्ञा लेनी चाहिए ।" यह भी प्रतिज्ञा स्त्रियों ने मंजूर की । ( तब सुन्दरकुमार ने एक २ प्रहार कम कर दो दो मारने के बाकी रक्खे )। मुनि ने शीलवत पालने की प्रतिज्ञा के लिए कहा सो भी स्त्रियों ने स्वीकार किया । ( यह सुनकर सेठ ने एक २ कम करके फक्त एक २ ही मारने का निश्चय किया )। परिग्रह परिमाण करने के लिए मुनिराज ने फर्माया उन्होंने सो भी अंगीकार किया। (सुन्दरकुमार सेठने शेष रहे हुए एक २ प्रहार को भी इस वक्त बंद किया )। इस प्रकार मुनिराज ने सेठ की पांचों स्त्रियों को पांचों व्रत ग्रहण कराये जिससे उनके पति ने पांचों दण्डप्रहार बंद किये । सुन्दरकुमार सेठ अंत में विचार करने लगा कि हा! हा! मैं कैसा महा पापी हूं कि अपने पर उपकार करने वाले का ही घात चिंतन किया । इस प्रकार पश्चात्ताप करता हुवा वह तत्काल ही मुनि के पास आया और नमस्कार कर अपना अपराध क्षमा कराकर पांचों स्त्रियों सहित संयम ले स्वग को सिधारा।
इस दृष्टांत में सारांश यह है कि, पांचों स्त्रियों ने व्रत अंगीकार किए । उस से उन के पति ने भी व्रत लिये। इस तरह जो व्रत अंगीकार करे उसे व्रतश्रावक समझना चाहिये।
उत्तरगुण श्रावक-व्रत श्रावक के अधिकार में बतलाए मुजब पांच अणुवत, छठा परिमाणव्रत, सातवां भोगोषभोग व्रत आठवां अनर्थदंड परिहार व्रत, (ये तीन गुणव्रत कहलाते हैं ) नवमां सामायिक व्रत दसर्या देशावकाशिक व्रत, ग्यारहवां पौषधोपवास व्रत, बारहवां अतिथिसंविभाग व्रत, (ये चारों शिक्षाबत