________________
७२
श्राद्धविधि प्रकरण कैद में पड़ने के, रोगी के, अपना पद खोने में, भ्रष्ट होने में, युद्ध करने में, शत्रु को मिलने में, अकस्मात् भय में, स्नान करने में, पानी पीने में भोजन करने में, गत वस्तु के ढूंढ़ने में, द्रव्य संग्रह में, पुत्र के लिये मैथुन करने में, विवाद करने में, कष्ट पाने में, इतने कार्यों में सूर्य नाडी श्रेष्ट कमझना। कितनेक आचार्य ऐसा भी कहते हैं कि---
विद्यारंभे च दीक्षायां, शस्त्राभ्यासविवादयो॥
राजदर्शनगीतादौ, मन्त्रतन्त्रादि साधने ॥ १८ ॥ ( सूर्यनाडी शुभा ) विधारंभ, दीक्षा, शस्त्राभ्यास, विवाद, राजदर्शन, गायनारंम, मंत्र तंत्र यंत्रादि के साधने में सूर्यनाड़ी श्रेष्ट मानी है।
सूर्य चन्द्र नाडी में विशेष करने योग्य कार्य ।
दक्षिणे यदि वा वामे, यत्र वायु निरंतर ॥
तं पादमग्रतः कृत्वा, नि:सरेन्निजमन्दिरात् ॥ १९ ॥ यदि बाएं नासिका का पवन चलता हो तो बांया पैर और यदि दाहिने नासिका का पवन चलता हो तो दाहिना पैर प्रथम उठाकर कार्य में प्रवर्तमान हो तो वह अविलंब से सिद्ध ही होता है।
अधर्मण्यारि चौराद्या विग्रहोत्पातिनोऽपि च ॥
शून्यांगे स्वस्य कर्तव्याः सुखलाभजयार्थिभिः ॥ २० ॥ अधी, पापी, चोर, दुष्ट, वैरी और लड़ाई करने वाले को शून्यांग ( बांया) करने से सुख लाभ और जय की प्राप्ति होती है।
स्वजनस्वामिगुर्बाद्या ये चान्ये हितचिंतकाः,
जीवांगे ते ध्रुवं कार्या, कार्यसिद्धिमभीप्सुभिः ॥ २१ ॥ स्वजन, स्वामी, गुरु, माता, पिता, आदि जो अपने हितचिंतक हों उन्हें दाहिनी तरफ रखने से जय, सुख और लाभ की प्राप्ति होती है।
प्रविशत्पपनापूर्णः नाशिका पक्षमाश्रितं ॥
पादं शय्योथ्थितो दद्यात्प्रथम पृथिवीतले ॥ २२ ॥ शुक्लपक्ष हो या कृष्णपक्ष परंतु दक्षिण या बायें जो नासिका पवन से परिपूर्ण होती हो वही पैर जमीन पर रख कर शय्या को छोड़ना चाहिये।
उपरोक्त बताई हुई रीति से निद्रा को त्याग कर श्रावक अत्यन्त बहुमान से परम मंगलकारी नवकार मंत्र का मन में स्मरण करे। कहा है कि
परमिष्ठि चिंतणं माणसंमि, सिज्जागएणक्कायव्वं ।