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श्राद्धविधि प्रकरण " तत्वों का फल"
जीवितव्ये जये लाभे सस्योत्पत्तौ च वर्षणे ॥ पुजार्थे युद्धमने च गमनागमने तथा ॥ ११ ॥ पृथ्वप्तत्वे शुभे स्यातां वन्हिवातौ च नो शुभौ ॥ अर्थसिद्धिस्थिरोर्व्यांतु शीघ्रमंभासि निर्दिशेत् ।। १२ ।।
जीवितत्व, जय, लाभ, वृष्टि, धान्य की उत्पत्ति, पुत्र प्राप्ति, युद्ध, गमन, आगमन, आदि के प्रश्न समय यदि पृथ्वी या जल त चलता हो तो श्रेयकारी और यदि वायु, अग्नि या आकाश तत्व हो तो श्रेयकारी न समझना । तथा अर्थ सिद्धि या स्थिर कार्य में पृथ्वीतत्व और शीघ्र ( जल्दी से करने लायक ) कार्य में जल तत्व श्रेयकारी है ।
" चन्द्रनाडी के बहते समय करने योग्य कार्य "
पूजाद्रव्यजनोद्वा दुर्गादि सरिदागमे ॥
गमागमे जीवितेच, गुरे क्षेत्रादि संग्रहे ॥ १३ ॥
क्रयविक्रयणे वृष्टौ सेवा कृषी द्विषज्जये ॥ विद्या पट्टाभिषेकादौ शुभेऽर्थे च शुभः शशी ॥ १४ ॥
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देव पूजन, ट्र्योर्पाजन, व्यापार, लग्न, राज्यदुर्ग लेना, नदी उतरना, जाने आने का प्रश्न, जीवित का प्रश्न घर क्षेत्र खरीदना बांधना, कोई वस्तु खरीदना या बेचने का प्रश्न, वृष्टि आने का प्रश्न, नौकरी, खेतीबाडी, शत्रुजय, विद्याभ्यास, पट्टाभिषेक पद प्राप्ति, ऐसे शुभ कार्य करते समय चन्द्र नाड़ी बहती हो तो उसे लाभकारी समझना ।
'प्रश्ने प्रारंभ चाषि कार्याणां वामनाशिका |
पूर्णवायोः प्रवेशश्चत्तदा सिद्धिरसंशयः ।। १५ ।।
किसी भी कार्य का प्रारंभ करते समय या प्रश्न करते समय यदि अपनी चन्द्र ( बांई ) नाड़ी चलती हो, या
बांई नासिका में पवन प्रवेश करता हो तो उस कार्य की तत्काल सिद्धि ही समझना ।
"सूर्य नाडी बहते हुए करने योग्य कार्य”
बद्धानां रोगमुक्तानां । प्रभृष्टानां निजास्पदात् ॥ प्रश्नैर्युद्धविश्रवैरि । संगमे सहसा भये || १६ || स्थाने पानेऽशने नष्टान्वेषे पुत्रार्थमैथुने ॥ विवादे दारुणेर्थे च सूर्यनाडी प्रशस्यते ॥ १७ ॥