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श्राद्धविधि प्रकरण
अपने चित्तमें उतार ले । २ पताका समान श्रावक - जिस प्रकार पताका पवनसे हिलती रहती है वैसे ही देशना 'सुनते समय भी जिसका चित्त स्थिर न हो । ३ खानसमान श्रावक - खूंटे जैसा, जिस प्रकार गहरा खूंटा गाडा हुवा हो और वह खींचने पर बड़ी मुश्किल से निकल सकता है वैसे ही साधु को किसी ऐसे कदाग्रह
दे कि, जिसमें से पीछे निकलना बड़ा मुश्किल हो और ४ खरंटक समान श्रावक-यानी कंटक जैसा अपने कदाग्रह को ( हठ को ) न छोड़े और गुरू को दुर्वचन रूप कांटों से बींध डाले ।
ये चार प्रकार के श्रावक किस नय में गिने जा सकते हैं ? यदि कोई यह सवाल करे तो उसे आचार्य उत्तर देते हैं कि व्यवहार नय के मत से श्रावक का आचार पालने के कारण ये चार भावश्रावकतया गिने जाते हैं, और निश्चय नय के मत से सौत समान तथा खरण्टक समान ये दो प्रकार के श्रावक प्रायः मिथ्यात्वी गिनाये जाने से द्रव्य श्रावक कहे जा सकते हैं । और दूसरे दो प्रकार के श्रावकों को भावश्रावक समझना चाहिये । कहा है कि
चितई जई कज्जाई । नदिट्ठ खलिओ विहोई निन्नेहो | gia वच्छलोजई | जणस्स जणणि समोसड्ढो ॥ १ ॥
साधु के काम सेवा भक्ति) करे, साधु का प्रमादाचरण देख कर स्नेह रहित न हो, एवं साधु लोगों
पर सदैव हितवत्सल रक्खे तो उसे "माता पिता के समान श्रावक” समझना चाहिये ।
हिए ससिहोच्चि । मुणिजण मंदायरो विणयकम्मे ॥
1
भायसमो साहूणं । परभवे होई सुसहाओ || २ ||
विनय वैयावश्च करने में अनादर हो परन्तु हृदय में स्नेहवन्त हो और कष्ट के समय सच्चा सहा
यकारी होवे, ऐसे श्रावक को "भाई समान श्रावक" कहा है।
मित्त समाणो माणा । इसिं रूसई अपुच्छिम कज्जे || मन्नं तो अप्पाणं । मुणीण सयणाओ अम्महिअं ॥ ३ ॥
साधु पर भाव (प्रेम) रखखे, साधु अपमान करे तथा बिना पूछे काम करे तो उनसे रूठ जाय परन्तु अपने सगे संबंधियोंसे भी साधु को अधिक गिने उसे "मित्र समान श्रावक" समझना चाहिये ।
थद्द। छिद्दप्पेही । पमाय खलियाइ निच्च मुच्चरइ || सढ्ढो सवधि. कप्पो । साहुजणं तणसमं गणइ ॥ ४ ॥
स्वयं अभिमानी हो, साधुके छिद्र देखता रहे, और जरा सा छिद्र देखने पर सब लोग सुने इस प्रकार जोरसे बोलता हो, साधुको तृण समान गिनता हो उसे "सौतसमान श्रावक" समझना ।
दूसरे चतुष्क में कहा है कि
गुरु भणिओ सुत्तथ्यो। बिंविज्जइ अवितहमणे जस्स ॥ सो आयंस समाणो सुसावओ वन्निओ समए ॥ १ ॥