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इसमें तो कहना ही क्या है ? क्या चंद्रमा अपने आश्रित खरंगोश के बालक को क्षुद्र होनेसे उसे गोदमें से अलग पटक देता है ? नहीं, हे राजन् ! तूं जगतमें श्रेष्ठ व आर्य होते हुए भी अनार्य की भांति क्षण भरमें मुझे भूल गया, परन्तु मैं क्षुद्र प्राणी तेरे समान मनुष्यको कैसे भूल सकता ? "
तोते के ये वचन सुन कर राजाको बडा आश्चर्य हुआ और गांगलि ऋषिको प्रणाम करके शीघ्र स्त्री समेत घोडे पर बैठकर तोते के पीछे चला । अपने नगरको पहुंचने की बडी उत्सुकतासे राजा तोतेके पीछे २ जा रहा था । ज्योंही उसका क्षितिप्रति - ष्ठित नगर कुछ २ नजर आने लगा तब वह तोता सुस्त होकर एक वृक्ष पर बैठ गया । यह देख चकित होकर राजाने आग्रहपूर्वक तोते से पूछा- 'हे तोते ! यद्यपि नगरके महल कोट आदि दीखते हैं तथापि अभी नगर दूर है, तूं इस भांति अप्रसन्न होकर क्यों बैठ गया ?"
तोतेने हुंकारा (हां ) देकर कहा कि - "ऐसा करनेका एक भारी कारण है | पंडित-जन बिना कारण कोई भी कार्य नहीं करते हैं.' राजाने घबराकर पूछा - "वह क्या ? "
तोता बोला- हे राजन् ! सुन । चन्द्रपुरीके राजा चन्द्रशेखरचन्द्र नामक बहिन जो कि तेरी प्यारी स्त्री है वह अन्दरसे कपटी व ऊपरसे मधुर भाषण करनेवाली होनेसे गायके समान मुंहवाले सिंहके समान है । जलके समान स्त्रीकी भी प्रायः