Book Title: Shatkhandagama Pustak 08
Author(s): Pushpadant, Bhutbali, Hiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
Publisher: Jain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
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चौदसगुणट्ठाणेसु एगसमइयउत्तरपच्चयपरूवणा
[२५ तत्थ ताव मिच्छाइट्ठिस्स जहण्णेण दस पच्चया। पंचसु मिच्छत्तेसु एक्को । एक्केण इंदिएण एक्कं कायं जहण्णेण विराहेदि [त्ति] दोण्णि असंजमपच्चया । अणंताणुबंधिचउक्कं विसंजोजिय मिच्छत्तं गयस्स आवलियमेत्तकालमणंताणुबंधिचउक्कस्सुदयाभावादो बारससु कसाएसु तिण्णि कसायपच्चया । तिसु वेदेसु एक्को । हस्स रदि-अरदि-सोगदोसु जुगलेसु एक्कदरं जुगलं । दससु जोगेसु एक्को जोगो । एवमेदे सव्वे वि जहण्णण दस पच्चया | १० | । पंचसु मिच्छतेसु एक्को । एक्केण इंदिएण छकाए विराहेदि त्ति सत्त असंजमपच्चया । सोलसेसु कसाएसु चत्तारि कसायपच्चया | ४ |। तिसु वेदेसु एक्को । हस्स-रदिअरदि-सोगदोजुगलेसु एकं जुगलं । भय-दुगुंछाओ दोण्णि । तेरसेसु जोगपच्चएसु एक्को । एवमेदे सव्वे वि अट्ठारस होति | १८ | । एवमेदेहि दस-अट्ठारसजहण्णुक्कस्सपच्चएहि मिच्छाइट्ठी अप्पिदसोलसपयडीओ बंधइ ।
एक्केणिदिएण एक्कं कायं विराहेदि त्ति दोअसंजमपच्चया । सोलसेसु कसाएसु चत्तारि कसायपच्चया । तिसु वेदेसु एक्को वेदपच्चओ । हस्स-रदि-अरदि-सोगदोजुगलेसु एक्कदरं जुगलं । तेरससु जोगेसु एक्को । एवं जहण्णेण सासणस्स दस पचया होति | १०|| उक्कसेण सत्तरस पच्चया होंति, मिच्छत्तस्सुदयाभावादो | १७ ।। एवमेदेहि जहण्णुक्कस्स
वह इस प्रकार है- उनमें मिथ्यादृष्टिके जघन्यसे दश प्रत्यय होते हैं। पांच मिथ्यात्वों से एक मिथ्यादृष्टि एक इन्द्रियसे एक कायकी जघन्यसे विराधना करता है, इस प्रकार दो असंयम प्रत्यय; अनन्तानुबन्धिचतुष्टयका विसंयोजन करके मिथ्यात्वको प्राप्त हुए जीवके आवलीमात्र काल तक अनन्तानुवन्धिचतुष्टयका उदय न रहनेसे वारह कषायोंमें तीन कषाय प्रत्यय, तीन वेदोंमें एक, हास्य-रति और अरति-शोक इन दो युगलोंमेंसे एक युगल, तथा दश योगोंमें एक योग, इस प्रकार ये सब ही जघन्यसे दश प्रत्यय होते हैं (१०)। पांच मिथ्यात्वोंमें एक, एक इन्द्रियसे छह कायोंकी विराधना करता है, अतः सात असंयम प्रत्यय, सोलह कषायों में चार कषाय प्रत्यय, तीन वेदों में एक, हास्य रति और अरति-शोक इन दो युगलों में एक युगल, भय व जुगुप्सा दो, तेरह योग प्रत्ययों से एक, इस प्रकार ये सभी अठारह होते हैं (१८)। इस प्रकार इन जघन्य दश और उत्कृष्ट अठारह प्रत्ययोसे मिथ्यादृष्टि जीव विवक्षित सोलह प्रकृतियोंको बांधता है।
___एक इन्द्रियसे एक कायकी विराधना करता है इस प्रकार दो असंयम प्रत्यय, सोलह कषायोंमें चार कषाय प्रत्यय, तीन वेदों में एक वेद प्रत्यय, हास्य-रति और अरतिशोक इन दो युगलोंमें एक युगल, तेरह योगों में एक योग, इस प्रकार सासादनसम्यग्दृष्टिके जघन्यसे दश (१०) और उत्कर्षसे सत्तरह प्रत्यय होते हैं। क्योंकि, उसके मिथ्यात्वका उदय नहीं रहता (१७) । इस प्रकार क्रमसे इन जघन्य और उत्कृष्ट दश व सत्तरह प्रत्ययोंसे छ. बं. ४.
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