Book Title: Shatkhandagama Pustak 08
Author(s): Pushpadant, Bhutbali, Hiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
Publisher: Jain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati

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Page 297
________________ २६८ ] छक्खंडागमे बंधसामित्तविचओ [ ३, १८६. पच्चयत्तादो । अगइसंजुत्तो, एत्थ चउगइबंधाभावादो । मणुससामिओ', अण्णत्थवगदवेदाभावादो । बंधद्धाणवजिओ, दव्वट्ठियणयविसयम्मि सव्वसंग हे अद्धाणाणुववत्तीदो' । अधवा अद्धाणसमण्णिओ, अवलंबियपज्जवट्ठियणयत्तादो । कोधबंधवोच्छिष्णद्वाणादो उवरिममद्भाणं संखेजखंडाणि काऊण बहुखंडे अइक्कंतेसु एयखंडावसेसे माणबंधो वोच्छिज्जदि । पुणो सेसमेयं खंड संखेज्जाणि खंडाणि करिय तत्थ बहुखंडेसु अइक्कंतेसु एयखंडावसेसे मायबंधो वोच्छिज्जदि । एदं कुदो वगम्मदे ? सेसे सेसे संखेज्जाभागं गंतूणे त्ति जिणवयणादो वगम्मदे । तिविहो, धुवत्ताभावाद । लोभसंजणस्स को बंधो को अबंधो ? ॥ १८६ ॥ सुगमं । ध्रुवबन्धी प्रकृतियां हैं। प्रत्यय अवगत हैं, क्योंकि, ओघप्रत्ययोंसे यहां कोई विशेषता नहीं है । अगतिसंयुक्त बन्ध होता है, क्योंकि, यहां चारों गतियोंके बन्धका अभाव है | मनुष्य स्वामी हैं, क्योंकि, अन्य गतियोंमें अपगतवेदियों का अभाव है । बन्धाध्वान नहीं है, क्योंकि, द्रव्यार्थिक नयके विषयभूत सर्व संग्रहके होनेपर अध्वान बनता नहीं है । अथवा पर्यायार्थिक नयका अवलम्बन करनेसे अध्वान से सहित बन्ध होता है । क्रोधके बन्धव्युच्छित्तिस्थान से ऊपरके कालके संख्यात खण्ड करके बहुत खण्डोंको विताकर एक खण्डके शेष रहनेपर मानका बन्ध व्युच्छिन्न होता है । तत्पश्चात् शेष एक खण्डके संख्यात खण्ड करके उनमें बहुत खण्डों को बिताकर एक खण्डके शेष रहनेपर मायाका बन्ध व्युच्छिन्न होता है । शंका- यह कहां से जाना जाता है ? समाधान- शेष शेषमें संख्यात बहुभाग जाकर इस जिनवचनसे उक्त बन्धव्युच्छित्तिक्रम जाना जाता है । तीन प्रकारका बन्ध होता है, क्योंकि, ध्रुव बन्धका अभाव है । संज्वलनलोभका कौन बन्धक और कौन अबन्धक है ? || १८६ ॥ यह सूत्र सुगम है । Jain Education International १ प्रतिषु ' मणुसासामिओ' इति पाठः । २ प्रतिषु ' अप्पाणुववत्तीयो ' इति पाठः । For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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