Book Title: Shatkhandagama Pustak 08
Author(s): Pushpadant, Bhutbali, Hiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
Publisher: Jain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
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छक्खंडागमे बंधसामित्तविचओ [३, २९५. णिद्दा-पयलाणं को बंधो को अबंधो ? ॥ २९५॥ सुगमं ।
असंजदसम्मादिटिप्पहुडि जाव अपुवकरणउवसमा बंधा । अपुवकरणउवसमद्धाए संखेज्जदिमं भागं गंतूण बंधो वोच्छिज्जदि। एदे बंधा, अवसेसा अबंधा ॥ २९६ ॥
____एदासिं बंधो पुव्वं वोच्छज्जदि । उदयवोच्छेदो णत्थि, खीणकसाएसु वि उदयदसणादो । सोदय-परोदओ बंधो, अडुवोदयत्तादो। णिरंतरो, धुवबंधित्तादो । असंजदसम्मादिट्ठीसु पंचेतालीस पच्चया, ओरालियमिस्सपच्चयाभावादो । पमतसंजदम्हि बावीस पच्चया, आहारदुगाभावादो। सेसगुणट्ठाणेसु ओघपच्चओ, विसेसाभावादो । असंजदसम्मादिद्विम्हि देव-मणुसगइसंजुत्तो, उवरिमेसु देवगइसंजुत्तो, चउगइअसंजदसम्मादिट्ठि-दुगइसंजदासंजद
निद्रा और प्रचलाका कौन बन्धक और कौन अबन्धक है ? २९५ ॥ यह सूत्र सुगम है।
असंयतसम्यग्दृष्टिसे लेकर अपूर्वकरण उपशमक तक बन्धक हैं । अपूर्वकरण उपशमकालका संख्यातवां भाग जाकर बन्ध व्युच्छिन्न होता है । ये बन्धक हैं, शेष अबन्धक हैं ॥ २९६॥
इनका बन्ध पूर्वमें व्युच्छिन्न होता है । उदयव्युच्छेद नहीं है, क्योंकि, क्षीणकषाय जीवोंमें भी उनका उदय देखा जाता है। स्वोदय-परोदय बन्ध होता है, क्योंकि, वे अध्रुवोदयी हैं । निरन्तर बन्ध होता है, क्योंकि, ध्रुवबन्धी हैं । असंयतसम्यग्दृष्टियोंमें पैंतालीस प्रत्यय हैं, क्योंकि, औदारिकमिश्र प्रत्ययका वहां अभाव है । प्रमत्तसंयत गुणस्थानमें बाईस प्रत्यय है, क्योंकि, वहां आहारकद्विकका अभाव है। शेष गुणस्थानों में ओघप्रत्ययोंसे संयुक्त बन्ध होता है, क्योंकि, ओघसे वहां कोई विशेषता नहीं है। असंयतसम्यग्दृष्टि गणस्थानमें देव व मनुष्य गतिले संयुक्त तथा उपरिम गुणस्थानों में देवगतिसंयुक्त होता है। चारों गतियोंके असंयतसम्यग्दृष्टि, दो गतियोंके संयतासंयत, और मनुष्य
१ अप्रतौ — पमत्तसंजदा हि बात्रीस ', आप्रतौ ‘पमतमजद० बावीप ', काप्रती पमत्तसंजदा बावीस' पति पाठः।
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