Book Title: Shatkhandagama Pustak 08
Author(s): Pushpadant, Bhutbali, Hiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
Publisher: Jain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
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छक्खंडागमे बंधसामित्तविचओ
[ ३, ३१४.
असंजसम्मादिट्टि पहुडि जाव अपुव्वकरणउवसमा बंधा । अपुव्वकरणुवसमद्धाए संखेज्जे भागे गंतॄण बंधो वोच्छिज्जदि । एदे बंधा, अवसेसा अबंधा ॥ ३१४ ॥
एदं पि सुगमं, बहुसो कयपरूवणादो । आहारसरीर-आहारसरीरअंगोवंगाणं को बंधो को अबंधो ?
३८० ]
॥ ३१५ ॥
सुमं ।
अप्पमत्तापुव्वकरणवसमा बंधा । अपुव्वकरणुवसमद्धांए संखेजे भागे गंतूण बंधो वोच्छिज्जदि । एदे बंधा, अवसेसा अबंधा ॥ ३१६ ॥
एदं पि सुगमं ।
सास सम्मादिट्टी मदिणाणिभंगो ॥ ३१७ ॥
असंयतसम्यग्दृष्टिसे लेकर अपूर्वकरण उपशमक तक बन्धक हैं । अपूर्वकरण उपशमकालके संख्यात बहुभाग जाकर बन्ध व्युच्छिन्न होता है । ये बन्धक हैं, शेष अबन्धक हैं । ३४ ॥
यह सूत्र भी सुगम है, क्योंकि, बहुत बार इसकी प्ररूपणा की जाच्चुकी है। आहारकशरीर और आहारकशरीरांगोपांगका कौन बन्धक और कौन अन्धक है ?
॥ ३१५ ॥
यह सूत्र सुगम है |
अप्रमत्त और अपूर्वकरण उपशमक बन्धक हैं । अपूर्वकरण उपशमकालके संख्यात बहुभाग जाकर चन् व्युच्छिन्न होता है । ये बन्धक हैं, शेष अबन्धक हैं ॥ ३१६ ॥
यह सूत्र भी सुगम है ।
सासादनसम्यग्दृष्टियोंकी प्ररूपणा मतिज्ञानियोंके समान है ॥ ३१७ ॥
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