Book Title: Shatkhandagama Pustak 08
Author(s): Pushpadant, Bhutbali, Hiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
Publisher: Jain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati

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Page 416
________________ ३, ३२२.] सणिमगणाए बंधसांमित्त । ३८७ सुत्तेसु एवंविहभेदाविरोहादो । पयडिबंधद्धाणणिबंधणभेदपदुप्पायणट्ठमाह णवरि विसेसो सादावेदणीयस्स चक्खुदंसणिभंगो ॥ ३२१॥ सुगममेदं । असण्णीसु अभवसिद्धियभंगो ॥ ३२२ ॥ पंचणाणावरणीय-णवदंसणावरणीय-सादासाद-मिच्छत्त-सोलसकसाय-णवणोकसाय-चउँआउ-चउगइ-पंचजादि-ओरालिय-वेउव्विय-तेजा-कम्मइयसरीर-छसंठाण-ओरालिय-वेउव्वियअंगोवंग-छसंघडण-वण्ण-गंध-रस-फास-चउआणुपुब्बी-अगुरुवलहुअ-उवघाद-परघाद-उस्सास-आदाउज्जोव-दोविहायगइ-तस-थावर-बादर-सुहुम-पज्जत्तापजत्त-पत्तेय-साहारणसरीर-थिराथिर-सुहासुह-सुभग-दूभग-सुस्सर-दुस्सर-आदेज-अणादेज्ज-जसकित्ति-अजसकित्ति-णिमिण-णीचुच्चागोदपंचतराइयपयडीओ असण्णीहि वज्झमाणियाओ । उदयादो बंधो पुव्वं पच्छा वा वोच्छिण्णो त्ति परिक्खा णत्थि, एत्थेदासिं बंधोदयवोच्छेदाभावादो । ............... विशेषता विरोधसे रहित है। प्रकृतियोंके बन्धाध्वानमिमित्तक भेदके प्ररूपणार्थ सूत्र कहते हैं परन्तु विशेषता इतनी है कि सातावेदनीयकी प्ररूपणा चक्षुदर्शनी जीवोंके समान है ॥ ३२१ ॥ यह सूत्र सुगम है। असंज्ञी जीवोंमें बन्धोदयव्युच्छेदादिकी प्ररूपणा अभव्यसिद्धिक जीवोंके समान है ॥ ३२२ ॥ पांच शानावरणीय, नौ दर्शनावरणीय, साता व असाता वेदनीय, मिथ्यात्व, सोलह कषाय, नौ नोकषाय, चार आयु, चार गतियां, पांच जातियां, औदारिक, वैक्रियिक, तैजस व कार्मण शरीर, छह संस्थान, औदारिक व वैक्रियिक शरीरांगोपांग, छह संहनन, वर्ण, गन्ध, रस, स्पर्श, चार आनुपूर्वी, अगुरुलघु, उपघात, परघात, उच्छ्वास, आताप, उद्योत, दो विहायोगतियां, त्रस, स्थावर, बादर, सूक्ष्म, पर्याप्त, अपर्याप्त, प्रत्येक व साधा. रण शरीर, स्थिर, अस्थिर, शुभ, अशुभ, सुभग, दुर्भग, सुस्वर, दुस्वर आदेय, अनादेय, यशकीर्ति, अयशकीर्ति, निर्माण, नीच व ऊंच गोत्र और पांच अन्तराय, ये प्रकृतियां असंत्री जीवोंके द्वारा बध्यमान हैं । उदयसे बन्ध पूर्वमें या पश्चात् व्युच्छिन्न होता है, यह परीक्षा यहां नहीं है। क्योंकि, यहां इन प्रकृतियों के बन्ध और उदयके व्युच्छेदका अभाव है। १ प्रतिषु । मिसेसा' इति पाठः । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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