Book Title: Shatkhandagama Pustak 08
Author(s): Pushpadant, Bhutbali, Hiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
Publisher: Jain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati

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Page 415
________________ छक्खंडागमे बंधसामित्तविचओ [३, ३१९. चउगइसम्मामिच्छाइट्ठिणो । बंधद्धाणं णत्थि, एक्कम्हि अद्धाणविरोहादो । बंधवोच्छेदो वि णस्थि, एत्थ सव्वासिं बंधुवलंभादो। धुवबंधिपयडीणं तिविहो बंधो, धुवाभावादो । सेसाणं सादि-अदुवो, अद्भुवबंधित्तादो । मिच्छाइट्ठीणमभवसिद्धियभंगो ॥ ३१९ ॥ सुगममेदं सुत्तं, विसेसाभावादो । णवरि धुवबंधिपयडीणं चउब्विहो बंधो, सादि-सांतरबंधुवलंभादो। सणियाणुवादेण सण्णीसु जाव तित्थयरे त्ति ओघभंगो ॥३२०॥ एइंदिय-बीइंदिय-तीइंदिय-चउरिंदियजादि-आदाव-थावर-सुहुम-साहारणाणं परोदयत्तुवलंभादो पंचिंदियजादि-तस-बादराणं सोदयबंधुवलंभादो णेदं सुत्तं जुज्जदे ? ण, देसामासिय नहीं है, क्योंकि, एक गुणस्थानमें अध्वानका विरोध है। बन्धव्युच्छेद भी नहीं है, क्योंकि, यहां सब प्रकृतियोंका बन्ध पाया जाता है । ध्रुवबन्धी प्रकृतियोंका तीन प्रकारका बन्ध होता है, क्योंकि, ध्रुवबन्धका यहां अभाव है। शेष प्रकृतियोंका सादि व अध्रुव बन्ध होता है, क्योंकि, वे अध्रुववन्धी हैं । मिथ्यादृष्टि जीवोंकी प्ररूपणा अभव्यसिद्धिक जीवोंके समान है ॥ ३१९ ॥ यह सूत्र सुगम है, क्योंकि, यहां कोई विशेषता नहीं है। भेद इतना है कि ध्रुवबन्धी प्रकृतियोंका यहां चारों प्रकारका बन्ध होता है, क्योंकि, सादि व सान्तर अर्थात् अध्रुव बन्ध पाया जाता है। संज्ञिमार्गणानुसार संज्ञी जीवोंमें तीर्थंकर प्रकृति तक ओघके समान प्ररूपणा है ॥३२० ॥ शंका-चूंकि यहां एकेन्द्रिय, द्वीन्द्रिय, त्रीन्द्रिय, चतुरिन्द्रिय जाति, आताप, स्थावर, सूक्ष्म और साधारण प्रकृतियोंका बन्ध परोदयसे और पंचेन्द्रिय जाति, त्रस व बादरका बन्ध स्वोदयसे पाया जाता है, अतएव यह सूत्र युक्त नहीं है ? समाधान-यह कोई दोष नहीं हैं, क्योंकि, देशामार्शक सूत्रोंमें इस प्रकारकी १ प्रतिषु अतोऽग्रे 'एगूणचालीसपच्चया' इत्यधिकः पाठः समुपलभ्यते । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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