Book Title: Shatkhandagama Pustak 08
Author(s): Pushpadant, Bhutbali, Hiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
Publisher: Jain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
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३९४] छक्खंडागमे बंधसामित्तविचओ
[ ३, ३२४. मणुसगइसंजुत्तो, तत्थण्णगईणं बंधाभावादो ।
मणुसगइ-मणुसगइपाओग्गाणुपुव्वी-ओरालियसरीर-ओरालियसरीरअंगोवंगाणं चउगइमिच्छाइटि-सासणसम्मादिट्ठी सामी, देव-णिरयगइअसंजदसम्मादिट्ठी सामी । एवं वज्जरिसहसंघडणस्स वि वत्तव्वं । सेसाणं पयडीणं चउगइमिच्छाइट्ठि-सासणसम्मादिट्ठि-असंजदसम्मादिट्ठिणो सामी । बंधद्धाणं सुगमं । बंधवोच्छेदो च सुगमो । धुवबंधीणं बंधो मिच्छाइट्ठीसु चउव्विहो, सासणसम्मादिट्ठि-असंजदसम्मादिट्ठीसु तिविहो । सेसाणं पयडीणं सव्वत्थ सादि-अडुवो।
थीणगिद्धितिय-अणंताणुबंधिचउक्कित्थिवेद-तिरिक्खगइ-चउसंघडण-चउसंठाण-तिरिक्खगइपाओग्गाणुपुवी-उज्जोव-अप्पसत्थविहायगइ-दूभग-दुस्सर-अणादेज्ज-णीचागोदाणं दुट्ठाणपयडीणं वुच्चदे- अर्णताणुबंधिचउक्कित्थिवेदाणं बंधोदया समं वोच्छिण्णा । दुभगाणादेजणीचागोद-तिरिक्खदुगाणं पुव्वं बंधो पच्छा उदओ वोच्छिज्जदि । अवसेसाणं पयडीणं बंधवोच्छेदो चेव, एत्थुदयविरोहादो । अणंताणुबंधिचउक्कित्थिवेद-तिरिक्खगइदुग-दुभगाणादेज्ज-णीचागोदाणं बंधो सोदय-परोदओ, उहयहा वि बंधविरोहाभावादो। सेसाणं परोदओ
ग्दृष्टियों में देव व मनुष्य गतिसे संयुक्त बन्ध होता है, क्योंकि, उनमें अन्य गतियोंके बन्धका अभाव है।
मनुष्यगति, मनुष्यगतिप्रायोग्यानुपूर्वी, औदारिकशरीर और औदारिकशरीरांगो. पांगके चारों गतियोंके मिथ्यादृष्टि व सासादनसम्यग्दृष्टि, तथा देवगति व नरकगतिके असंयतसम्यग्दृष्टि स्वामी हैं। इसी प्रकार वज्रर्षभसंहननके भी कहना चाहिये । शेष प्रकृतियोंके चारों गतियोंके मिथ्यादृष्टि, सासादनसम्यग्दृष्टि और असंयतसम्यग्दृष्टि स्वामी हैं। बन्धाध्वान सुगम है। बन्धव्युच्छेद भी सुगम है। ध्रुवबन्धी प्रकृतियोंका बन्ध मिथ्यादृष्टियों में चारों प्रकारका होता है। सासादनसम्यग्दृष्टि और असंयतसम्यग्दृष्टियोंसे तीन प्रकारका बन्ध होता है। शेष प्रकृतियोंका सर्वत्र सादि व अध्रुव बन्ध होता है।
स्त्यानगृद्धित्रय, अनन्तानुबन्धिचतुष्क, स्त्रीवेद, तिर्यग्गति, चार संहनन, चार संस्थान, तिर्यग्गतिप्रायोग्यानुपूर्वी, उद्योत, अप्रशस्तविहायोगति, दुर्भग, दुस्वर, अनादेय और नीचगोत्र, इन द्विस्थान प्रकृतियोंकी प्ररूपणा करते हैं- अनन्तानुबन्धिचतुष्क और स्त्रीवेदका बन्ध व उदय दोनों साथ व्युच्छिन्न होते हैं। दुर्भग, अनादेय, नीचगोत्र और तिर्यग्गतिद्विकका पूर्वमें बन्ध और पश्चात् उदय व्युच्छिन्न होता है। शेष प्रकृतियोंका केवल बन्धव्युच्छेद ही है, क्योंकि, यहां उनके उदयका विरोध है। अनन्तानुबन्धिचतुष्क, स्त्रीवेद, तिर्यग्गतिद्विक, दुर्भग, अनादेय और नीचगोत्रका बन्ध स्वोदय-परोदय होता है, क्योंकि, दोनों प्रकारसे भी इनके बन्धका विरोध नहीं है। शेष प्रकृतियोंका परोदय बन्ध
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