Book Title: Shatkhandagama Pustak 08
Author(s): Pushpadant, Bhutbali, Hiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
Publisher: Jain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati

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Page 407
________________ ३७८] छक्खंडागमे बंधसामित्तविचओ [३, ३०७. सुगममेदं । माण-मायसंजलणाणं को बंधो को अबंधो ? ॥ ३०७॥ सुगमं । असंजदसम्मादिहिप्पहुडि जाव अणियट्टी उवसमा बंधा। अणियट्टिउवसमद्धाए सेसे सेसे संखेज्जे भागे गंतूण बंधो वोच्छिज्जदि । .एदे बंधा, अवसेसा अबंधा ॥ ३०८ ॥ एदं पि सुगम, बहुसो परूविदत्तादो। लोभसंजलणस्स को बंधो को अवंधो ? ॥ ३०९ ॥ सुगमं । असंजदसम्मादिटिप्पहुडि जाव अणियट्टी उवसमा बंधा । अणियट्टिउवसमद्धाएं चरिमसमयं गंतूण बंधो वोच्छिज्जदि । एदे बंधा, अवसेसा अबंधा ॥ ३१० ॥ यह सूत्र सुगम है। संज्वलन मान और मायाका कौन बन्धक और कौन अबन्धक है ? ॥ ३०७ ॥ यह सूत्र सुगम है। असंयतसम्यग्दृष्टिसे लेकर अनिवृत्तिकरण उपशमक तक बन्धक हैं। अनिवृत्तिकरणउपशमकालके शेष शेषमें संख्यात बहुभाग जाकर बन्ध व्युच्छिन्न होता है। ये बन्धक हैं, शेष अबन्धक हैं ।। ३०८॥ यह सूत्र भी सुगम है, क्योंकि, बहुत वार इसकी प्ररूपणा की जाचुकी है। संज्वलन लोभका कौन बन्धक और कौन अबन्धक है ? ॥ ३०९ ॥ यह सूत्र सुगम है। असंयतसम्यग्दृष्टिसे लेकर अनिवृत्तिकरण उपशमक तक बन्धक हैं । अनिवृत्तिकरणउपशमकालके अन्तिम समयको जाकर बन्ध व्युच्छिन्न होता है। ये बन्धक हैं, शेष अबन्धक हैं ॥ ३१०॥ Jain Education International For Private & Personal use only . www.jainelibrary.org

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