Book Title: Shatkhandagama Pustak 08
Author(s): Pushpadant, Bhutbali, Hiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
Publisher: Jain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati

View full book text
Previous | Next

Page 405
________________ ३७६] छक्खंडागमे बंधसामित्तविचओ [ ३, २९९. . असादावेदणीय-अरदि-सोग अथिर-असुह-अजसकित्तिणामाणं को बंधो को अबंधो ? ॥ २९९ ॥ सुगमं । असंजदसम्मादिटिप्पहुडि जाव पमत्तसंजदा बंधा । एदे बंधा, अवसेसा अबंधा ॥ ३०० ॥ सुगममेदं, मदिणाणमग्गणाए परूविदत्थत्तादो । अपच्चक्खाणावरणीयमोहिणाणिभंगो ॥ ३०१॥ अपच्चक्खाणचउक्क-मणुसगइ-ओरालियसरीर-ओरालियसरीरअंगोवंग-वज्जरिसहसंघडण-मणुसगइपाओग्गाणुपुवीणं एत्थ गहणं कायव्वं, देसामासियत्तादो । सेसं सुगम । णवरि ओरालियमिस्सपच्चओ अवणेयव्यो । कथं वेउब्धियमिस्स-कम्मइयाणमुवलंभो' ? उवसमसम्मत्तेण उवसमसेडिं चडिय कालं काऊण देवेसुप्पण्णाणं तदुवलंभादो । ...................................... असातावेदनीय, अरति, शोक, अस्थिर, अशुभ और अयशकीर्ति नामकर्मोंका कौन बन्धक और कौन अबन्धक है ? ॥ २९९ ॥ यह सूत्र सुगम है। असंयतसम्यग्दृष्टिसे लेकर प्रमत्तसंयत तक बन्धक हैं । ये बन्धक हैं, शेष अबन्धक हैं ॥ ३०० ।। यह सूत्र सुगम है, क्योंकि, मतिशान मार्गणामें इसके अर्थकी प्ररूपणा की जाचुकी है। अप्रत्याख्यानावरणीयकी प्ररूपणा अवधिज्ञानियोंके समान है ॥ ३०१॥ अप्रत्याख्यानावरणचतुष्क, मनुष्यगति, औदारिकशरीर, औदारिकशरीरांगोपांग, वज्रर्षभसंहनन और मनुष्यगतिप्रायोग्यानुपूर्वीका यहां ग्रहण करना चाहिये, क्योंकि, यह सूत्र देशामर्शक है। शेष प्ररूपणा सुगम है। विशेष इतना है कि औदारिकमिश्र प्रत्ययको कम करना चाहिये। शंका-वैक्रियिकमिश्न ओर कार्मण काययोग यहां कैसे पाये जाते हैं ? समाधान-उपशमसम्यक्त्वके साथ उमशमश्रेणि चढ़कर और मरकर देवोंमें उत्पन्न हुए जीवोंके वे दोनों प्रत्यय पाये जाते हैं । १ प्रतिषु ' -मुवलंभादो' इति पाठः । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 403 404 405 406 407 408 409 410 411 412 413 414 415 416 417 418 419 420 421 422 423 424 425 426 427 428 429 430 431 432 433 434 435 436 437 438 439 440 441 442 443 444 445 446 447 448 449 450 451 452 453 454 455 456 457 458