Book Title: Shatkhandagama Pustak 08
Author(s): Pushpadant, Bhutbali, Hiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
Publisher: Jain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
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३, २९८.] सम्मत्तमग्गणार बंधसामित्तं
[ ३७५ मणुसगइसंजदसामीओ, अवगयबंधद्धाणो, अपुवकरणद्धाए संखेज्जदिमे भागे गयविणासो, धुवबंधित्तादो तिविहाणो णिहा-पयलाणं बंधो ।
सादावेदणीयस्स को बंधो को अबंधो ॥ २९७ ॥ सुगमं ।
असंजदसम्मादिटिप्पहुडि जाव उवसंतकसायवीयरागछदुमत्था बंधा । एदे बंधा, अबंधा णत्थि ॥ २९८ ॥
बंधवोच्छेदं मोत्तूण उदयवोच्छेदाभावादो, सोदय-परोदयबंधादो, असंजदप्पहुडि जाव पमत्तसंजदो त्ति सांतरं बंधिदूणुवरि णिरतरबंधित्तादो, ओघपच्चएहितो असंजदसम्मादिट्ठिपमत्तसंजदे मोत्तूण अण्णत्थ समाणपच्चयत्तादो, असंजदसम्मादिहि-पमत्तसंजदेसु ओरालियमिस्साहारदुगाभावादो, असंजदसम्मादिट्ठीसु दुगइसंजुत्तादो उवरि देवगइसंजुत्तबंधादो, चउगइअसंजदसम्मादिहि-दुगइसंजदासंजद-मणुसगइसंजदसामिबंधादो, बंधेण सादि-अडुवत्तादो सुगममेदं ।
गतिके संयत स्वामी हैं। बन्धाध्वान ज्ञात हो है । अपूर्वकरणकालका संख्यातवां भाग वीतनेपर बन्ध व्युच्छिन्न होता है । ध्रुवबन्धी होनेसे निद्रा व प्रचलाका तीन प्रकार बन्ध होता है।
सातावेदनीयका कौन बन्धक और कौन अबन्धक है ? ॥ २९७ ॥ यह सूत्र सुगम है।
असंयतसम्यग्दृष्टि से लेकर उपशान्तकषाय वीतराग छद्मस्थ तक बन्धक हैं। ये बन्धक हैं, अबन्धक नहीं है ॥ २९८ ॥
सातावेदनीयके बन्धव्युच्छेदको छोड़कर उदयव्युच्छेदका अभाव होनेसे, स्वोदयपरोदय बन्ध होनेसे, असंयतसम्यग्दृष्टिसे लेकर प्रमत्तसंयत तक सान्तर बंधकर ऊपर निरन्तरबन्धी होनेसे, असंयतसम्यग्दृष्टि और प्रमत्तसंयतोंको छोड़कर अन्यत्र औघके समान प्रत्यय युक्त होनेसे,असंयतसम्यग्दृष्टियों में औदारिकमिश्र और प्रमत्तसंयतोंमें आहारद्विकका अभाव होनेसे, असंयतसम्यग्दृष्टियोंमें दो गतियोंसे संयुक्त तथा ऊपर देवगतिसंयुक्त बन्ध होनेसे; चारों गतियोंके असंयतसम्यग्दृष्टि, दो गतियोंके संयतासंयत, और मनुष्यगतिके संयत स्वामी होनेसे; तथा बन्धसे सादि व अध्रुव होनेसे यह सूत्र सुगम है।
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