Book Title: Shatkhandagama Pustak 08
Author(s): Pushpadant, Bhutbali, Hiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
Publisher: Jain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
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छक्खंडागमे बंधसामित्तविचओ
[ ३, २२५.
संजमाणुवादेण संजदेसु मणपज्जवणाणिभंगो ॥ २२५ ॥
जधामणपज्जवणाणमग्गणाए परूवणा कदा तथा एत्थ कायञ्चा । णवरि पञ्चयादिविसेसो जागिय वत्तत्र । एत्थ विसेसदुपायणमुत्तरमुत्तं भणदि
२९८ ]
वरि विसेसो सादावेदणीयस्स को बंधो को अबंधो ?
॥ २२६ ॥
सुगमं ।
पमतसं जप्यहुडि जाव सजोगिवळी बंधा । सजोगिकेवलि - अदाए चरिमसमयं गंतूग बंधो वोच्छिज्जदि । एदे बंधा, अवसेसा अबंधा ॥ २२७ ॥
सुगममेदं ।
सामाइय-छेदोवडावण बुद्धिसंजदेसु पंचगाणावरणीय-सादावेद णीय- लोभसं जल ग- जसकिति उच्चा गोद पंचंतराइयाणं को बंधो को अबंधो ? ।। २२८ ॥
संयममार्गणानुसार संयत जीवोंमें मन:पर्ययज्ञानियों के समान प्ररूपणा है ।। २२५॥
जिस प्रकार मन:पर्ययज्ञानमार्गणा में प्ररूपणा की गई है, उसी प्रकार यहां करना चाहिये । विशेष इतना है कि प्रत्ययादि के भेदको जानकर कहना चाहिये। यहां विशेषता बतलाने के लिये उत्तर सूत्र कहते हैं-
विशेषता इतनी है कि सातावेदनीयका कौन बन्धक और कौन अबन्धक है ? ॥२२६॥ यह सूत्र सुगम है |
प्रमत्तसंयत से लेकर सयोगकेवली तक बन्धक हैं । सयोगकेवलिकालके अन्तिम समयको जाकर बन्ध व्युच्छिन्न होता है । ये बन्धक हैं, शेष अबन्धक हैं ॥ २२७ ॥ यह सूत्र सुगम है ।
सामायिक-छेदोपस्थापनशुद्धिसंयतों में पांच ज्ञानावरणीय, सातावेदनीय, संज्वलनलोभ, यशकीर्ति, उच्चगोत्र और पांच अन्तराय, इनका कौन बन्धक और कौन अबन्धक है ?
॥ २२८ ॥
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