Book Title: Shatkhandagama Pustak 08
Author(s): Pushpadant, Bhutbali, Hiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
Publisher: Jain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati

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Page 380
________________ ३, २७२.] लेस्सामग्गणाए बंधसामित्तं [ ३५१ उवरि तिविहो, धुवाभावादो। पुरिसवेद-कोधसंजलणाणं बंधोदया समं वोच्छिण्णा, अणियट्टिम्मि तदुहयवोच्छेददंसणादो । सोदय-परोदओ, उभयहा वि बंधुवलंभादो । कोधसंजलणस्स बंधो णिरंतरो, धुवबंधित्तादो । पुरिसवेदस्स मिच्छाइट्ठि-सासणसम्मादिट्ठीसु सांतर-णिरंतरो, सुक्कलेस्सियतिरिक्ख-मणुस्सेसु पुरिसवेदं मोत्तूणण्णवेदाणं बंधाभावादो। उवरि णिरंतरो, पडिवक्खपयडिबंधाभावादो । पच्चया सुगमा । णवरि मिच्छाइट्ठि-सासणसम्मादिट्ठीसु ओरालियमिस्सपञ्चओ अवणेयव्यो । चदुसु असंजदगुणट्ठाणेसु दुगइसंजुत्तो, उवरि देवगइसंजुत्तो बंधो अगइसंजुत्तो वा । तिगइअसंजदगुणट्ठाणाणि दुगइसंजदासंजदों मणुसगइसंजदा च सामी। बंधद्धाणं तुगमं । अणियट्टिअद्धाए संखेज्जे भागे गंतूण बंधो वोच्छिज्जदि । कोधसंजलणस्स मिच्छाइटिम्हि चउव्विहो बंधो। उवरि तिविहो, धुवाभावादो । पुरिसवेदस्स सादि-अद्भुवो, भडुपबंधित्तादो। ___ माण-माया-लोहसंजलणाणं कोहसंजलणभंगो । णपरि बंधवोच्छेदपदेसो जाणिय वत्तव्यो । वहां ध्रुव बन्धका अभाव है। पुरुषवेद और संज्वलनक्रोधका बन्ध व उदय दोनों साथमें व्युच्छिन्न होते हैं, क्योंकि, अनिवृत्तिकरण गुणस्थानमें उन दोनोंका व्युच्छेद देखा जाता है । स्वोदय परोदय बन्ध होता है, क्योंकि, दोनों प्रकारोंसे ही बन्ध पाया जाता है। संज्वलनक्रोधका बन्ध निरन्तर होता है, क्योंकि, वह ध्रुवबन्धी है। पुरुषवेदका मिथ्यादृष्टि और सासादनसम्यग्दृष्टि गुणस्थानों में सान्तर निरन्तर बन्ध होता है, क्योंकि, शुक्ललेश्यावाले तिर्यंच व मनुष्यों में पुरुषवेदको छोड़कर अन्य वेदोंके बन्धका अभाव है। ऊपर निरन्तर बन्ध होता है, क्योंकि, वहां प्रतिपक्ष प्रकृतियोंके बन्धका अभाव है। प्रत्यय सुगम हैं । विशेष इतना है कि मिथ्यादृष्टि और सासादनसम्यग्दृष्टि गुणस्थानों में औदारिकमिश्र प्रत्यय कम करना चाहिये । चार असंयत गुणस्थानों में दो गतियोंसे संयुक्त और ऊपर देवगतिसे संयुक्त अथवा अगतिसंयुक्त बन्ध होता है । तीन गतियोंके असंयत गुणस्थान, दो गतियोंके संयतासंयत, और मनुष्यगतिके संयत स्वामी हैं। बन्धाध्वान सुगम है । अनिवृत्तिकरणकालके संख्यात बहुभाग जाकर बन्ध व्युच्छिन्न होता है। संज्वलनक्रोधका मिथ्यादृष्टि गुणस्थानमें चारों प्रकारका बन्ध होता है। ऊपर तीन प्रकारका बन्ध होता है, क्योंकि, वहां ध्रुव बन्धका अभाव है। पुरुषवेदका सादि व अध्रुव वन्ध होता है, क्योंकि, वह अध्रुवबन्धी है। संज्वलन मान,माया और लोभकी प्ररूपणा संज्वलनक्रोधके समान है। विशेषता इतनी है कि बन्धव्युच्छेदस्थानको जानकर कहना चाहिये। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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