Book Title: Shatkhandagama Pustak 08
Author(s): Pushpadant, Bhutbali, Hiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
Publisher: Jain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati

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Page 391
________________ ३६२] छक्खंडागमे बंधसामित्तविचओ [ ३, २७७. दुगोरालियमिस्स-कम्मइयपच्चयाणमभावादो। बीइंदिय-तीइंदिय-चरिंदियजादि-सुहुम-अपजत्तसाहारणाणं तेवंचास पच्चया, वेउव्वियद्गाभावादो। सादावेदणीय-इत्थि-पुरिसवेद-हस्स-रदि-पसत्थविहायगइ-समचउरससंठाण-थिर-सुभसुभग-सुस्वर-आदेज्ज-जसकित्तीणं तिगइसंजुत्तो बंधो, णिरयगईए अभावादो । णिरयाउणिरयगइ-णिरयगइपाओग्गाणुपुवीणं णिरयगइसंजुत्तो । देवाउ-देवगइ-देवगइपाओग्गाणुपुवीणं देवगइसंजुत्तो। मणुसाउ-मणुसगइ-मणुसगइपाओग्गाणुपुवीणं मणुसगइसंजुत्तो। तिरिक्खाउतिरिक्खगइ-तिरिक्खगइपाओग्गाणुपुवीणं चदुजादि-आदावुज्जोव-थावर-सुहुम साहारणाणं तिरिक्खगइसंजुत्तो । वेउव्वियसरीर-वेउव्वियसरीरअंगोवंगाणं देव-णिरयगइसंजुत्तो । ओरालियसरीर-ओरालियसरीरंगोवंग-चउसंठाण-छसंघडण-अपज्जत्तणामकम्माणं तिरिक्ख-मणुसगइसंजुत्तो बंधो। हुंडसंठाण-अप्पसत्थविहायगइ-अथिर-असुह-दुभग-दुस्सर-अणादेज्ज-णीचागोदाणं तिगइसंजुत्तो, देवगईए अभावादो । उच्चागोदस्स दुगइसंजुत्तो, णिरय-तिरिक्खगईणमभावादो । अवसेसाणं पयडीणं बंधो चउगइसंजुत्तो । देवाउ-णिरयाउ-देवगइ-णिरयगइ-बीइंदिय-तीइंदिय-चरिंदियजादि-वेउब्वियस्सरीर औदारिकमिश्र और कार्मण प्रत्ययोंका अभाव है। द्वीन्द्रिय, त्रीन्द्रिय, चतुरिन्द्रिय जाति, सूक्ष्म, अपर्याप्त और साधारणके तिरेपन प्रत्यय हैं, क्योंकि, उनके वैक्रियिकद्विकका अभाव है। सातावेदनीय, स्त्रीवेद, पुरुषवेद, हास्य, रति, प्रशस्तविहायोगति, समचतुरस्त्रसंस्थान, स्थिर, शुभ, सुभग, सुस्वर, आदेय और यशकीर्तिका तीन गतियोंसे संयुक्त बन्ध होता है,क्योंकि, इनके साथ नरकगतिके बन्धका अभाव है। नारकायु, नरकगति और नरकगतिप्रायोग्यानुपूर्वीका नरकगतिसंयुक्त बन्ध होता है । देवायु, देवगति और देवगतिप्रायोग्यानुपूर्वीका देवगतिसंयुक्त बन्ध होता है । मनुष्यायु, मनुष्यगति और मनुष्यगतिप्रायोग्यानुपूर्वीका मनुष्यगतिसंयुक्त बन्ध होता है । तिर्यगायु, तिर्यग्गति व तिर्यग्गतिप्रायोग्यानुपूर्वी तथा चार जातियां, आताप, उद्योत, स्थावर, सूक्ष्म और साधारणका तिर्यग्गतिसंयुक्त बन्ध होता है । वैक्रियिकशरीर और वैक्रियिकशरीरांगोपांगका देव एवं नरक गतिसे संयुक्त बन्ध होता है। औदारिकशरीर, औदारिकशरीरांगोपांग, चार संस्थान, छह संहनन और अपर्याप्त नामकर्मोंका तिर्यगति व मनुष्यगतिसे संयुक्त बन्ध होता है । हुण्डसंस्थान, अप्रशस्तविहायोगति, अस्थिर, अशुभ, दुर्भग, दुस्वर, अनादेय और नीचगोत्रका तीन गतियोंसे संयुक्त बन्ध होता है, क्योंकि, इनके साथ देवगतिके बन्धका अभाव है। उच्चगोत्रका दो गतियोंसे संयुक्त बन्ध होता है, क्योंकि, उसके साथ नरकगति और तिर्यग्गतिका बन्ध नहीं होता। शेष प्रकृतियोंका बन्ध चारों गतियोंसे संयुक्त होता है। देवायु, नारकायु, देवगति, नरकगति, द्वीन्द्रिय, त्रीन्द्रिय, चतुरिन्द्रिय जाति, Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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