Book Title: Shatkhandagama Pustak 08
Author(s): Pushpadant, Bhutbali, Hiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
Publisher: Jain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
View full book text
________________
१, २८२.]
सम्मत्तमागणाए बंधसामित्त सुस्सर-आदेज्ज-जसकित्ति-णिमिण-तित्थयरुच्चागोद-पंचंतराइयाणं को बंधो को अबंधो ? ॥ २८१ ॥
एत्थ अक्खसंचारं काऊण पण्णारस पण्णभंगा उप्पाएयव्वा । सेसं सुगमं ।
असंजदसम्मादिटिप्पहुडि जाव अप्पमत्तसंजदा बंधा । एदे बंधा, अबंधा णस्थि ॥ २८२ ॥
एदस्स देसामासियसुत्तस्स परूवणा कीरदे--- देवगइ-वेउब्बियदुगणमसंजदसम्मादिट्ठिम्हि उदओ वोच्छिण्णो पुव्वमेव । बंधवोच्छेदो णत्थि, उवरिम्हि बंधुवलंभादो । तित्थयरस्स णत्थि उदयवोच्छेदो, एदेसु उदयाभावादो । बंधवोच्छेदो वि णत्थि, उबलममाणत्तादो। अवसेसाणं पयडीणं बंधोदयाणं दोणं पि वोच्छेदाभावादो उदयादो बंधो पुच्च पच्छा वा योच्छिंण्णो त्ति ण परीक्खा कीरदे ।
पंचणाणावरणीय चउर्दसणावरणीय-पंचिंदियजादि-तेजा-कम्मइयसरीर-वण्ण-गंध रसफास-अगुरुवलहुव-तस-बादर-पज्जत्त-थिर-सुह-णिमिण-पंचंतराइयाणं सोदओ बंधो, एत्थ धुवो
.......
पर्याप्त, प्रत्येकशरीर, स्थिर, शुभ, सुभग, सुस्वर, आदेय, यशकीर्ति, निर्माण, तीर्थकर, उच्चगोत्र और पांच अन्तराय, इनका कौन बन्धक और कौन अबन्धक है ? ॥ २८१ ॥
___ यहां अक्षसंचार करके चौदह गुणस्थान और सिद्धोंके आश्रयसे एक संयोगी पन्द्रह प्रश्नभंगोंको उत्पन्न करना चाहिये । शेष सूत्रार्थ सुगम है।
___ असंयतसम्यग्दृष्टिसे लेकर अप्रमत्तसंयत तक बन्धक हैं । ये बन्धक हैं, अबन्धक नहीं हैं ॥ २८२॥
इस देशामर्शक सूत्रकी प्ररूपणा करते हैं देवगति और वैकिायकहिकका उदय असंयत्तसम्यग्रधि गुणस्थानमें पर्वमें ही व्यछिन्न हो जाता है। बन्धब्युच्छेद-नहीं है, क्योंकि, ऊपर बन्ध पाया जाता है। तीर्थकर प्रकृतिका उदयव्युच्छेद नहीं है, क्योंकि क्षायोपशमिकसम्यग्दृष्टियों में उसके उदयका अभाव है। उसके बन्धका व्युच्छेद भी नहीं है, क्योंकि, वह पाया जाता है । शेष प्रकृतियोंके बन्ध और उदय दोनोंक भी व्युच्छेदका अभाव होनेसे 'उदयकी अपेक्षा बन्ध पूर्वमै अथवा पश्चात् ब्युच्छिन्न होता है" यह परीक्षा नहीं की जाती है।
पांच ज्ञानावरणीय, चार दर्शनावरणीय, पंचेन्द्रिय जाति, तैजस व कार्मण शरीर, वर्ण, गन्ध, रस, स्पर्श, अगुरुलघु, प्रस, बादर, पर्याप्त, स्थिर, शुभ, निर्माण और पाँच
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org