Book Title: Shatkhandagama Pustak 08
Author(s): Pushpadant, Bhutbali, Hiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
Publisher: Jain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
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छक्वंडागमे बंधसामित्तविचओ [ ३, २०३. गइसंजदासजदप्पहुडिओ च' सामी ।
णवरि विसेसो सादावेदणीयस्स मणजोगिभंगो ॥२७३॥
ओघादो को एत्थ विसेसो ? ण, ओघम्मि अबंधगाणमुवलंभादो। एत्थ पुण ते णत्थि, अजोगीसु लेस्साभावादो। का लेस्सा णाम? जीव-कम्माणं संसिलेसणयरी, मिच्छत्तासंजम-कसायजोगा' त्ति भणिदं होदि । सेसं जसकित्तिभंगो ।
बेट्टाणि-एक्कट्ठाणीणं णवगेवज्जविमाणवासियदेवाणं भंगो ॥ २७४ ॥
एदस्स देसामासियसुत्तस्स अत्थो उच्चदे । तं जहा- थीणगिद्धितिय-अणंताणुबंधिचउक्कित्थिवेद-चउसंठाण-चउसंघडण-अप्पसत्थविहायगइ-दुभग-दुस्सर-अणादेज्ज-णीचा
मनुष्यगतिक संयतासंयतादिक स्वामी हैं।
परन्तु विशेष इतना है कि सातावेदनीयकी प्ररूपणा मनोयोगियों के समान है ॥२७॥ शंका-ओघसे यहां क्या भेद है ?
समाधान-नहीं, क्योंकि ओघमें सातावेदनीयके अबन्धक पाये जाते हैं । किन्तु यहां वे नहीं हैं, कारण कि अयोगी जीवोंमें लेश्याका अभाव है।
शंका-लेश्या किसे कहते हैं ?
समाधान-जो जीव व कर्मका सम्बन्ध कराती है वह लेश्या कहलाती है । अभिप्राय यह कि मिथ्यात्व, असंयम, कषाय और योग,ये लेश्या है ।
शेष विवरण यशकीर्ति के समान है।
द्विस्थानिक और एकस्थानिक प्रकृतियोंकी प्ररूपणा नौ ग्रैवेयक विमानवासी देवोंके समान है ॥ २७४ ॥
इस देशामर्शक सूत्रका अर्थ कहते हैं। वह इस प्रकार है- स्त्यानगृद्धित्रय, अनन्तानुबन्धिचतुष्क, स्त्रीवेद, चार संस्थान, चार संहनन, अप्रशस्तविहायोगति, दुर्भग,
१ आप्रतौ ' संजदासजदप्पहुडिसंजदाओ च ' इति पाठः । २ अ-आप्रयोः · संकिलिस्सणयरि ', कापतौ — संकिलिस्सणेरड्य ' इति पाठः । ३ अत्रतौ · कसायाजोगा ' इति पाठः ।
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