Book Title: Shatkhandagama Pustak 08
Author(s): Pushpadant, Bhutbali, Hiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
Publisher: Jain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
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२९६ ] छक्खंडागमे बंधसामित्तविचओ
[ ३, २१९. सुगमं ।
पमत्तसंजदप्पहुडि जाव अपुव्वकरणपइट्ठउवसमा खवा बंधा । अपुव्वकरणद्धाए संखेज्जदिमं भागं गंतूण बंधो वोच्छिजदि । एदे बंधा, अवसेसा अबंधा ॥ २१९ ॥
एदं पि सुगम, ओघम्मि वुत्तत्थत्तादो । सादावेदणीयस्स को बंधो को अबंधो ? ॥ २२० ॥ सुगमं ।
पमत्तसंजदप्पहुडि जाव खीणकसायवीयरायछदुमत्था बंधा । एदे बंधा, अबंधा णत्थि ॥ २२१ ॥ __सुगममेदं ।
सेसमोघं जाव तित्थयरे ति । णवरि पमत्तसंजदप्पहुडि त्ति भाणिदव्वं ॥ २२२ ॥
एदं पि सुगमं ।
यह सूत्र सुगम है।
प्रमत्तसंयतसे लेकर अपूर्वकरणप्रविष्ट उपशमक व क्षपक तक बन्धक हैं । अपूर्वकरणकालके संख्यातवें भाग जाकर बन्ध व्युच्छिन्न होता है। ये बन्धक हैं, शेष अबन्धक हैं॥२१९॥
यह सूत्र भी सुगम है, क्योंकि, ओघमें इसका अर्थ कहा जा चुका है। सातावेदनीयका कौन बन्धक और कौन अबन्धक है ? ॥ २२० ॥ यह सूत्र सुगम है।
प्रमत्तसंयतसे लेकर क्षीणकषायवीतराग छद्मस्थ तक बन्धक हैं ।। ये बन्धक हैं, अबन्धक नहीं हैं ॥ २२१ ॥
यह सूत्र सुगम है।
शेष प्ररूपणा तीर्थकर प्रकृति तक ओघके समान है। विशेष इतना है कि 'प्रमत्तसंयतसे लेकर ' ऐसा कहना चाहिये ॥ २२२ ॥
___ यह सूत्र भी सुगम है।
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