Book Title: Shatkhandagama Pustak 08
Author(s): Pushpadant, Bhutbali, Hiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
Publisher: Jain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati

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Page 371
________________ छक्खंडागमे वसामित्तविचओ [ ३, २६५. वज्जरिसहवइरणारायणसंघडणाणं बंधो परोदओ, सुहलेस्सियतिरिक्ख - मणुस्सेसु एदासिं बंधाभावादो । अपच्चक्खाणचउक्क - ओरालियसरीराणं बंधो णिरंतरो । बंधो मणुसगइदुगस्स मिच्छाइट्ठ- सासणसम्मादिट्ठीसु सांतरो । उवरि णिरंतरो । एवं वज्जरिसहसंघडणस्स वि वत्तव्वं । ओरालियसरीरअंगोवंगस्स बंधो मिच्छाइट्ठिम्हि सांतरो । उवरि णिरंतरो, एइंदियबंधाभावादो । पच्चया सुगमा । णवरि अपच्चक्खाणचउक्कस्स दोसु गुणट्ठाणेसु ओरालिय मिस्सपच्चओ अवणेयव्वो । मणुसगइदुगोरा लिय दुग- वज्जरि सहसंघडणाणं ओरालियदुगणवुंसयवेदपच्चया तिसु गुणट्ठाणेसु अवणेयव्वा । सम्मामिच्छाइट्टिम्हि दो चेव अवणेयव्वा', ओरालियमिस्सपच्चयस्स पुव्वमेवाभावादो । अपच्चक्खाणच उक्कस्स मिच्छाइट्ठि - सासण सम्मादिट्ठीसु तिगइसजुत्ता बंधो । उवरि दुगइसंजुत्तो, णिरय - तिरिक्खगईणमभावादो | मणुसगइदुगस्स मणुसग संजुत्तो । ओरालियदुग-वज्जरिसहसंघडणाणं मिच्छाइट्ठि - सासणसम्मादिट्ठिणो दुगइसंजुत्तमुवरि मणुसग इसंजुत्तमण्णगइबंधाभावादो । अपच्चक्खाणच उक्कस्स तिगइमिच्छादिट्ठि-सासणसम्मादिट्ठिसम्मामिच्छादिट्ठि-असंजद सम्मादिट्टिणो सामी । अवसेसाणं पयडीणं देवा सामी । बंधद्धाणं ३४२ ] मनुष्यगतिद्विक, औदारिकद्विक और वज्रर्षभवज्रनाराच संहननका बन्ध परोदय होता है, क्योंकि, शुभ लेश्यावाले तिर्यच व मनुष्योंमें इनके बन्धका अभाव है । अप्रत्याख्यानावरणचतुष्क और औदारिकशरीरका बन्ध निरन्तर होता है | मनुष्यगतिद्विकका बन्ध मिथ्यादृष्टि और सासादन सम्यग्दृष्टि गुणस्थानों में सान्तर होता है । ऊपर उसका निरन्तर बन्ध होता है । इसी प्रकार वज्रर्षभसंहननके भी कहना चाहिये । औदारिकशरीरांगोपांगका बन्ध मिथ्यादृष्टि गुणस्थान में सान्तर होता है । ऊपर निरन्तर होता है, क्योंकि, वहां एकेन्द्रियके बन्धका अभाव है । प्रत्यय सुगम हैं। विशेष इतना है कि अप्रत्याख्यानावरणचतुष्कके दो गुणस्थानोंमें औदारिकमिश्र प्रत्ययको कम करना चाहिये । मनुष्यगतिद्विक, औदारिकद्विक और वज्रर्षभसंहननके औदारिकद्विक और नपुंसकवेद प्रत्ययको तीन गुणस्थानों में कम करना चाहिये । सम्यग्मिथ्यादृष्टि गुणस्थान में दो प्रत्ययों को ही कम करना चाहिये, क्योंकि, औदारिकमिश्न प्रत्ययका पहले ही अभाव हो चुका है । अप्रत्याख्यानावरणचतुष्कका मिथ्यादृष्टि और सासादनसम्यग्दृष्टि गुणस्थानोंमें तीन गतियोंसे संयुक्त बन्ध होता है । ऊपर दो गतियोंसे संयुक्त बन्ध होता है, क्योंकि, वहां नरकगति और तिर्यग्गतिका अभाव है । मनुष्यगतिद्विकका मनुष्यगतिसंयुक्त बन्ध होता है । औदारिकद्विक और वज्रर्षभसंहननका मिथ्यादृष्टि व सासादनसम्यग्दृष्टि गुणस्थानों में दो गतियोंसे संयुक्त तथा ऊपर मनुष्यगतिले संयुक्त बन्ध होता है, क्योंकि, वहां अन्य गतियोंके बन्धका अभाव है । अप्रत्याख्यानावरणचतुष्कके तीन गतियोंके मिध्यादृष्टि, सासादनसम्यग्दृष्टि, सम्यग्मिथ्यादृष्टि और असंयतसम्यग्दृष्टि स्वामी हैं। शेष प्रकृतियोंके देव स्वामी हैं । १ प्रतिषु ' अवणेयव्त्रो ' इति पाठः । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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