Book Title: Shatkhandagama Pustak 08
Author(s): Pushpadant, Bhutbali, Hiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
Publisher: Jain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
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३, २७०.] लेस्सामग्गणाए बंधसामित्तं
[३१५ . सुगममेदं । कुदो ? अप्पमत्तसंजदा चेव बंधआ', उवरि तेउलेस्साए अभावादो।
तित्थयरणामाणं को बंधो को अबंधो ? असंजदसम्माइट्ठी जाव अप्पमत्तसंजदा बंधा । एदे बंधा, अवसेसा अबंधा ॥ २७० ॥
___ सुगमं । णवरि देव-मणुससामीओ बंधो । एवं तेउलेस्साए एसा परूवणा कदा । जहा तेउलेस्साए परूवणा कदा तहा पम्मलेस्साए वि कायव्वा । णवीर पुरिसवेदस्स जम्हि सांतरो बंधो परूविदो तम्हि सांतर-णिरंतरो त्ति वत्तव्यो, पम्मलेस्सियतिरिक्ख मणुस्सेसु पुरिसवेदं मोत्तूण अण्णवेदस्स बंधाभावादो। जासिं पयडीणं बंधस्स देवा चेव सामी तासिमित्थिवेदपच्चओ अवणेयव्वो, देवेसु पम्मलेस्साए इत्थिवेदाणुवलंभादो । पंचिंदियतसपयडीणं बंधो णिरंतरो त्ति वत्तव्बो, तेउलेस्साए एदासिं बंधस्स सांतर-णिरंतरत्तुवलंभादो। ओरालियसरीरअंगोवंगस्स बंधो परोदओ।णिरंतरो, पम्मलेस्साए अंगोवंगेण विणा बंधाभावादो। पम्मलेस्साए पयडिबंधगयभेदपरूवणट्ठमाह--
यह सूत्र सुगम है। कारण कि अप्रमत्तसंयत ही बन्धक हैं, क्योंकि, इससे ऊपरके गुणस्थानोंमें तेजोलेश्याका अभाव है।
तीर्थंकर नामकर्मका कौन बन्धक और कौन अबन्धक है ? असंयतसम्यग्दृष्टियोंसे लेकर अप्रमत्तसंयत तक बन्धक हैं । ये बन्धक हैं, शेष अबन्धक हैं ॥ २७० ॥
यह सूत्र सुगम है । विशेष इतना है कि इसके बन्धके स्वामी देव व मनुष्य हैं। इस प्रकार तेजोलेश्याका आश्रयकर यह प्ररूपणा की गई है। जिस प्रकार तेजोलेश्यामें प्ररूपणा की है उसी प्रकार पद्मलेश्याम भी करना चाहिये । विशेषता यह है कि पुरुषवेदका जहां सान्तर बन्ध कहा गया है वहां 'सान्तर-निरन्तर' ऐसा कहना चाहिये, क्योंकि, पद्मलेश्या युक्त तिर्यंच व मनुष्योंमें पुरुषवेदको छोड़कर अन्य वेदके बन्धका अभाव है । जिन प्रकृतियोंके बन्धके देव ही स्वामी हैं उनके स्त्रीवेद प्रत्ययको कम करना चाहिये, क्योंकि, देवोंमें पद्मलेश्यामें स्त्रीवेद नहीं पाया जाता । पंचेन्द्रिय जाति और प्रस प्रकृतियोंका बन्ध निरन्तर होता है, ऐसा कहना चाहिये; क्योंकि, तेजोलेश्यामें इनके बन्धके सान्तर निरन्तरता पाई जाती है । औदारिकशरीरांगोपांगका वन्ध परोदयसे होता है । निरन्तर बन्ध होता है, क्योंकि, पद्मलेश्यामें अंगोपांगके विना बन्धका अभाव है। पद्मलेश्यामें प्रकृतिवन्धगत भेदके प्ररूपणार्थ आगेका सूत्र कहते हैं
२ प्रतिषु ' तेउलेस्साएसा' इति पाठः ।
१ प्रतिषु 'बंधओ' इति पाठः।
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