Book Title: Shatkhandagama Pustak 08
Author(s): Pushpadant, Bhutbali, Hiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
Publisher: Jain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati

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Page 365
________________ ३३६ ] छखंडागमे बंधसामित्तविचओ मिच्छाइट्ठि- सास सम्मादिट्ठीणमपज्जत्तकाले सुहलेस्साणमभावादो । पंचणाणावरणीय छदंसणावरणीय सादावेदणीय - चउसंजलण- पुरिसंवेद-हस्स-रदि-भयदुगुंछा - पंचिंदिय-तेजा-कम्मइय- समच उरससंठाण - वण्णचउक्क- अगुरुवलहुअचउक्क - पसत्थविहाय गदि - थिर - सुभग- सुस्सर-आदेज्ज-जसकित्तिणिमिण-पंचंतराइयाणं मिच्छाइट्ठि-सासणसम्मादिट्ठी बंधो तिगइसंजुत्तो, णिरयगईए अभावादो । सम्मामिच्छाइट्ठि - असंजदसम्मादिट्ठीसु दुगइसंजुत्तो, णिरय-तिरिक्खगईणमभावादों । उवरिमेसु देवगइसंजुत्ता, तत्थण्णगईणं बंधाभावादो | देवगइ-वेउव्वियदुगाणं देवगइसंजुत्ता, अण्णगईहि बंधविरोहादो | उच्चा गोद स मिच्छाइट्ठि-सासणसम्मादिट्ठि-सम्मामिच्छादिट्ठि-असंजदसम्मादिट्ठीसु देव- मणुस गइसंजुत्तो । उवरि देवगइ संजुत्ता बंधो । सव्वासि पयडीणं तिगइमिच्छादिट्ठि - सासणसम्मादिट्ठि सम्मामिच्छादिट्ठि-असंजदसम्मादिट्टिणी सामी, णिरएसु तेउलेस्सादिसुहलेस्साभावादो। दुगइसंजदासंजदा, मणुस गइसंजदा [ ३, २६०. क्योंकि, तिर्यच व मनुष्य मिथ्यादृष्टि एवं सासादनसम्यग्दृष्टियों के अपर्याप्तकालमें शुभ लेश्याओंका अभाव है । पांच ज्ञानावरणीय, छह दर्शनावरणीय, सातावेदनीय, चार संज्वलन, पुरुषवेद, हास्य, रति, भय, जुगुप्सा, पंचेन्द्रिय जाति, तैजस व कार्मण शरीर, समचतुरस्रसंस्थान, वर्णादिक चार, अगुरुलघु आदिक चार, प्रशस्तविहायोगति, स्थिर, सुभग, सुस्वर, आदेय, यशकीर्ति, निर्माण और पांच अन्तरायका मिथ्यादृष्टि व सासादनसम्यग्दृष्टि गुणस्थानों में तीन गतियोंसे संयुक्त बन्ध होता है, क्योंकि, वहां नरकगतिका अभाव है । सम्यग्मिथ्यादृष्टि और असंयतसम्यग्दृष्टि गुणस्थानों में दो गतियोंसे संयुक्त वन्ध होता है, क्योंकि, वहां नरकगति और तिर्यग्गतिका अभाव है । उपरिम गुणस्थानों में देवगति संयुक्त बन्ध होता है, क्योंकि, वहां अन्य गतियोंके बन्धका अभाव है । देवगतिद्विक और वैक्रियिकद्विकका देवगतिसंयुक्त बन्ध होता है, क्योंकि, अन्य गतियोंके साथ इनके बन्धका विरोध है । उच्चगोत्रका मिथ्यादृष्टि, सासादनसम्यग्दृष्टि, सम्यग्मिथ्यादृष्टि और असंयतसम्यग्दृष्टि गुणस्थानोंमें देव व मनुष्य गतिसे संयुक्त बन्ध होता है । ऊपर देवगति से संयुक्त बन्ध होता है । सब प्रकृतियों के तीन गतियोंके मिथ्यादृष्टि, सासादनसम्यग्दृष्टि, सम्यग्मिथ्यादृष्टि और असंयतसम्यग्दृष्टि स्वामी हैं, क्योंकि, नारकियों में तेजोलेश्यादि शुभ लेश्याओंका अभाव है । दो गतियोंके संयतासंयत और मनुष्यगतिके संयत स्वामी हैं । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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