Book Title: Shatkhandagama Pustak 08
Author(s): Pushpadant, Bhutbali, Hiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
Publisher: Jain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
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३, २४२. ]
संजममग्गणाए बंधसामित्तं
[ ३०९
कायजोग-लोभकसाय- चदुमण - वचिजोगा त्ति दस पच्चया । अगइसंजुत्तो बंधो, एत्थं चउगइबंधाभावाद । मणुसा सामो, अण्णत्थ सुहुमसांपराइयाणमभावादो । बंधद्धाणं णत्थि, सुहुमसांपराय पहुडित्ति सुत्ते अणुवदिट्ठत्तादो । बंधवेोच्छेदो गत्थि, 'अबंधा णत्थि ' त्ति वयणादो । पंचणाणावरणीय - चउदंसणावरणीय पंचंतराइयाणं तिविहो बंधो, धुवाभावादो । सेसाणं सादि-अद्भुवो ।
जहाक्खादविहार सुद्धिसंजदेसु सादावेदणीयस्स को बंधो को अबंध ? || २४१ ॥ सुमं ।
उवसंतकसायवीदरागछदुमत्था खीणकसायवीयरायछदुमत्था सजोगिकेवली बंधा । सजोगिकेवलिअद्धाए चरिमसममं गंतूण [ बंधो ] वोच्छिजदि । एदे बंधा, अवसेसा अबंधा ॥ २४२ ॥ सुगममेदं, केवलणाणमग्गणापरूवणाए समाणत्तादो |
वचनयोग, ये दश प्रत्यय हैं। गतिसंयोग से रहित बन्ध होता है, क्योंकि, यहां चारों गतियों के बन्धका अभाव है | मनुष्य स्वामी हैं, क्योंकि, अन्य गतियों में सूक्ष्मसाम्परायिक संयतोंका अभाव है । बन्धाध्वान नहीं है, क्योंकि, 'सूक्ष्मसाम्परायिक आदि ' ऐसा सूत्रमें निर्देश नहीं किया गया है । बन्धव्युच्छेद नहीं है, क्योंकि, 'अबंधक नहीं है ' ऐसा सूत्रका वचन है । पांच ज्ञानावरणीय, चार दर्शनावरणीय और पांच अन्तराय, इनका तीन प्रकारका बन्ध होता है, क्योंकि, उनके ध्रुव बन्धका अभाव है। शेष प्रकृतियोंका सादि व अध्रुव बन्ध होता है ।
यथाख्यातविहारशुद्धिसंयतों में सातावेदनीयका कौन बन्धक और कौन अबन्धक है ?
॥ २४१ ॥
यह सूत्र सुगम है।
उपशान्तकषाय वीतराग छद्मस्थ, क्षीणकषाय वीतराग छद्मस्थ और सयोगकेवली बन्धक हैं | सयोगकेवलिकालके अन्तिम समयको जाकर [ बन्ध ] व्युच्छिन्न होता है । बन्धक हैं, शेष अबन्धक हैं ॥ २४२ ॥
यह सूत्र सुगम है, क्योंकि, केवलज्ञानमार्गणाकी प्ररूपणा से इसकी समानता है ।
१ प्रतिषु ' अजोगिनेत्रलि ' इति पाठः ।
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