Book Title: Shatkhandagama Pustak 08
Author(s): Pushpadant, Bhutbali, Hiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
Publisher: Jain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
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३१८) छक्खंडागमे बंधसामित्तविचओ
[३, २५०. मुगमं ।
मिच्छाइट्ठी सासणसम्माइट्ठी असंजदसम्माइट्ठी बंधा। एदे बंधा, अवसेसा अबंधा ॥ २५० ॥
सुगमं । तित्थयरणामस्स को बंधो को अबंधों? ॥ २५१ ॥ सुगमं । असंजदसम्माइट्ठी बंधा । एदे बंधा, अवसेसा अबंधा ॥२५२॥ सुगमं ।
दसणाणुवादेण चक्खुदंसणि-अचक्खुदंसणीणमोघं णेदव्वं जाव तित्थयरे त्ति ॥ २५३ ॥
तिणं जाईणमादाव-थावर-सुहुम-साहारणाणे चक्खुदंसणीसु परोदयत्तुवलंभादो ओघ
यह सूत्र सुगम है।
मिथ्यादृष्टि, सासादनसम्यग्दृष्टि और असंयतसम्यग्दृष्टि बन्धक हैं। ये बन्धक हैं, शेष अबन्धक हैं ॥ २५०॥
यह सूत्र सुगम है। तीर्थकर नामकर्मका कौन बन्धक और कौन अबन्धक है ? ॥ २५१ ॥ यह सूत्र सुगम है। असंयतसम्यग्दृष्टि बन्धक हैं । ये बन्धक हैं, शेष अवन्धक हैं ॥ २५२ ॥ यह सूत्र सुगम है।
दर्शनमार्गणानुसार चक्षुदर्शनी और अचक्षुदर्शनी जीवोंकी प्ररूपणा तीर्थकर प्रकृति तक ओघके समान जानना चाहिये ॥ २५३॥
शंका-तीन जातियां, आताप, स्थावर, सूक्ष्म और साधारण प्रकृतियोंका चक्षुदर्शनियों में चूंकि परोदय बन्ध पाया जाता है, अत एव 'उनकी प्ररूपणा ओघके समान
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