Book Title: Shatkhandagama Pustak 08
Author(s): Pushpadant, Bhutbali, Hiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
Publisher: Jain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
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२७४ ] छक्खंडागमे बंधसामित्तविचओ
[३, १९१. संघडण-उज्जोव-अप्पसत्थविहायगइ-दुभग-दुस्सर-अणादेज्जाणं बंधो सांतरो, एगसमएण वि बंधुवरमदंसणादो । तिरिक्खगइ-तिरिक्खगइपाओग्गाणुपुब्बि-णीचागोदाणं दोसु वि गुणट्ठाणेसु सांतर-णिरंतरा बंधो, तेउ-बाउक्काइएसु सत्तमपुढविणेरइएसु च णिरंतरबंधुवलंभादो । अवसेसाणं पयडीणं बंधो णिरंतरो, एगसमएण बंधुवरमाभावादो । पच्चया सुगमा ।
तिरिक्खाउ-तिरिक्खगइपाओग्गाणुपुब्धि-उज्जोवाणि तिरिक्खगइसंजुत्तं बंधति । इत्थिवेदं तिगइसंजुत्तं, णिरयगईए बंधाभावादो। चउसंठाण-चउसंघडणाणि तिरिक्ख-मणुसगइसंजुत्तं बंधंति, अण्णगईहि बंधाभावादो। अप्पसत्थविहायगइ-दुभग-दुस्सर-अणादेज्ज-णीचागोदाणि तिगइसंजुत्तं बंधति, देवगईए बंधाभावादो । सासणो तिरिक्ख-मणुसगइसंजुत्तं बंधइ, तस्सण्णगईहि विरोहादो । चउगइमिच्छादिहि-सासण सम्मादिडियो सामी । उवरि सुगमं, बहुसो परूविदत्तादो।
जाव पच्चक्खाणावरणीयमोघं ॥ १९१ ॥
बेढाणदंडयं परूविय पच्छा जेणेदं सुत्तं परविदं तेण णिदादंडयमादि कादूणे त्ति अत्थावत्तीदो अवगम्मदे । णिदा-असादेगट्ठाण-अपचक्खाण-पञ्चक्खाणदंडयाणं परूवणाए
और अनादेयका बन्ध सान्तर होता है, क्योंकि, एक समयसे भी उनका बन्धविश्राम देखा जाता है। तिर्यग्गति, तिर्यग्गतिनायोग्यानुपूर्वी और नीच गोत्रका दोनों ही गुणस्थानों में सान्तरनिरन्तर बन्ध होता है, क्योंके, तेजकायिक व वायुकाायक तथा सतम पृथिवीके नारकियोंमें निरन्तर बन्ध पाया जाता है । शेष प्रकृतियोंक वन्ध निरन्तर होता है, क्योंकि, एक समयसे उनके बन्धविश्रामका अभाव है। प्रत्यय सुगम हैं।
तिर्यगायु, तिर्यग्गतिप्रायोग्यानुपूर्वी और उद्योतको तिर्यग्गतिसे संयुक्त बांधते हैं । स्त्रीवेदको तीन गतियोले संयुक्त बांधते हैं, क्योंकि, नरकगतिके साथ उसके बन्धका अभाव है । चार संस्थान और चार संहननोंको तिर्यग्गति और मनुष्यगतिसे संयुक्त बांधते हैं, क्योंकि, अन्य गतियों के साथ उनके वन्धका अभाव है। अप्रशस्तविहायोगति, दुर्भग, दुस्वर, अनादेय और नीचगोत्रको तीन गतियोंसे संयुक्त बांधते हैं, क्योंकि.देवगतिके साथ इनके बन्धका अभाव है। सासादनसम्यग्दृष्टि इन्हें तिर्यग्गति व मनुष्यगतिसे संयुक्त बांधता है,क्योंकि, उसके अन्य गतियोंके साथ इनके वन्धका विरोध है । चारों गतियोंके मिथ्यादृष्टि और सासादन सम्यग्दृष्टि स्वामी हैं । उपरिम प्ररूपणा सुगम है, क्योंकि, वह बहुत वार की जा चुकी है।
प्रत्याख्यानावरणीय तक सब प्रकृतियोंकी प्ररूपणा ओघके समान है ॥ १९१ ॥
द्विस्थानदण्डककी प्ररूपणा करके पीछे चूंकि इस सूत्रकी प्ररूपणा की गई है अत एव 'निद्रादण्डकको आदि करके', यह अर्थापत्तिसे जाना जाता है । निद्रा, असातावेदनीय, एकस्थानिक, अप्रत्याख्यान और प्रत्याख्यान दण्डकोंकी प्ररूपणा ओघके समान है । उसको
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