Book Title: Shatkhandagama Pustak 08
Author(s): Pushpadant, Bhutbali, Hiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
Publisher: Jain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
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२९२ छक्खंडागमे बंधसामित्तविचओ
[ ३, २१५. पच्चय-गइसंजोग-सामित्तद्धाण-बंधवियप्पा जाणिय वत्तव्वा' ।
. मणुसाउअस्स पुन्वावरकालसंबंधिबंधोदयपरिक्खा सुगमा । परोदओ बंधो, मणुस्साउबंधोदयाणमसंजदसम्मादिविम्हि अक्कमेण वुत्तिविरोहादो। णिरंतरो, एगसमएण बंधुवरमाभावादो। बाएत्तालीस पच्चया, ओरालिय-ओरालियमिस्स-वेउब्बियमिस्स-कम्मइयपच्चयाणमभावादो । मणुसगइसंजुत्ता बंधो। देव-णेरइया सामी । बंधद्धाणं णत्थि, एक्कम्हि गुणट्ठाणे अद्वाणविरोहादो। असंजदसम्मादिट्ठिम्हि बंधो वोच्छिज्जदि । सादि-अद्धवो, अद्धवबंधित्तादो।
देवाउअस्स पुव्वमुदओ पच्छा बंधो वोच्छिज्जदि, अप्पमत्तासंजदसम्मादिट्ठीसु बंधोदयवोच्छेदुवलंभादो । परोदओ, सोदएण बंधविरोहादो । णिरंतरो, अंतोमुहुत्तेण विणा बंधुवरमाभावादो । पच्चया ओघतुल्ला । देवगइसंजुत्तो बंधो । तिरिक्ख-मणुसअसंजदसम्मादिहि-संजदासंजदा मणुससंजदा च सामी, अण्णत्थ बंधाणुवलंभादो । असंजदसम्मादिट्ठिप्पहुडि जाव अप्पमत्तसंजदा त्ति बंधद्धाणं । अप्पमत्तसंजदद्धाए संखेज्जदिमं भाग गंतूण बंधो
होता है । सान्तर-निरन्तरता, प्रत्यय, गतिसंयोग, स्वामित्व, अध्वान और बन्धविकल्प, इनको जानकर कहना चाहिये।
मनुष्यायुके पूर्वापर काल सम्बन्धी बन्ध और उदयके व्युच्छेदकी परीक्षा सुगम है । परोदय बन्ध होता है, क्योंकि, मनुष्यायुके वन्ध और उदयके असंयतसम्यग्दृष्टि गुणस्थानमें एक साथ अस्तित्वका विरोध है । निरन्तर वन्ध होता है, क्योंकि, एक समयसे उसके बन्धविश्राम का अभाव है। व्यालीस प्रत्यय हैं, क्योंकि, औदारिक, औदारिकमिश्र, वैक्रियिकमिश्र और कार्मण प्रत्ययोंका अभाव है। मनुष्यगतिसे संयुक्त बन्ध होता है। देव व नारकी स्वामी हैं । बन्धाध्वान नहीं है, क्योंकि, एक गुणस्थानमें अध्वानका विरोध है । असंयतसम्यग्दृष्टि गुणस्थानमें वन्ध व्युच्छिन्न होता है। सादि व अध्रुव बन्ध होता है, क्योंकि, वह अध्रुवबन्धी है ।
देवायुका पूर्वमें उदय और पश्चात् बन्ध व्युच्छिन्न होता है, क्योंकि, अप्रमत्त और असंयतसम्यग्दृष्टि गुणस्थानों में क्रमसे उसके बन्ध और उदयका व्युच्छेद पाया जाता है । परोदय बन्ध होता है,क्योंकि, स्वोदयसे उसके बन्धका विरोध है। निरन्तर बन्ध होता है, क्योंकि, अन्तर्मुहूर्त के विना उसके बन्धविश्रामका अभाव है। प्रत्यय ओघके समान है। देवगतिसे संयुक्त बन्ध होता है । तिर्यंच व मनुष्य असंयतसम्यग्दृष्टि और संयतासंयत,तथा मनुष्य संयत स्वामी हैं, क्योंकि, अन्य गतियों में उसका बन्ध पाया नहीं जाता। असंयतसम्यग्दृष्टिसे लेकर अप्रमत्तसंयत तक बन्धाध्वान है । अप्रमत्तसंयतकालके संख्यातवें भाग जाकर बन्ध
१ प्रतिषु वित्तव्वो' इति पाठः ।
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