Book Title: Shatkhandagama Pustak 08
Author(s): Pushpadant, Bhutbali, Hiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
Publisher: Jain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
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२८६) छक्खंडागमे बंधसामित्तविचओ
[ ३, २१०. सुहुम-अपज्जत्त-साहारण-णिरयाणुपुवीण परोदओ बंधो, एदेसु विभंगणाणीणमभावादो । सेसं सुगमं ।
आभिणिबोहिय-सुद-ओहिणाणीसु पंचणाणावरणीय-चउदंसणावरणीय-जसकित्ति-उच्चागोद-पंचंतराइयाणं को बंधो को अबंधो ? ॥२१०॥
एवं सुगमं ।
असंजदसम्माइटिप्पहुडि जाव सुहुमसांपराइयउवसमा खवा बंधा। सुहुमसांपराइयअद्धाए चरिमसमयं गंतूण बंधो वोच्छिजदि । एदे बंधा, अवसेसा अबंधा ॥ २११॥
एदासिमुदयादो बंधो पुव्वं वोच्छिण्णो, बंधे वोच्छिण्णे संते वि पच्छा उदयदसणादो। पंचणाणावरणीय-चउदसणावरणीय-पंचंतराइयाणं सोदओ बंधो। जसकित्तीए असंजदसम्मादिद्विम्हि सोदय-परोदओ, पडिवक्खुदयदसणादो । उवरि सोदओ चेव, पडिवक्खुदयाभावादो।
जाति, आताप, स्थावर, सूक्ष्म, अपर्याप्त, साधारण और नारकानुपूर्वीका परोदय बन्ध होता है, क्योंकि, इनमें विभंगज्ञानी जीवोंका अभाव है। शेष प्ररूपणा सुगम है।
आभिनिबोधिक, श्रुत और अवधि ज्ञानी जीवोंमें पांच ज्ञाणावरणीय, चार दर्शनावरणीय, यशकीर्ति, उच्चगोत्र और पांच अन्तरायका कौन बन्धक और कौन अबन्धक है ? ॥ २१० ॥
यह सूत्र सुगम है।
असंयतसम्यग्दृष्टिसे लेकर सूक्ष्मसाम्परायिक उपशमक व क्षपक तक बन्धक हैं । सूक्ष्मसाम्परायिककालके अन्तिम समयको जाकर बन्ध व्युच्छिन्न होता है। ये बन्धक हैं, शेष अबन्धक हैं ॥ २११ ॥
इन प्रकृतियोंका बन्ध उदयसे पूर्वमें व्युच्छिन्न होता है, क्योंकि, बन्धके व्युच्छिन्न हो जानेपर भी पीछे इनका उदय देखा जाता है । पांच ज्ञानावरणीय, चार दर्शनावरणीय और पांच अन्तरायका स्वोदय बन्ध होता है । यशकीर्तिका असंयतसम्यग्दृष्टि गुणस्थानमें स्वोदय परोदय बन्ध होता है, क्योंकि, यहां उसकी प्रतिपक्ष प्रकृतिका उदय देखा जाता है। ऊपर स्वोदय ही बन्ध होता है, क्योंकि, वहां प्रतिपक्ष प्रकृतिक उदयका अभाव है।
१ प्रतिषु । साहारणा' इति पाठः। २ प्रतिषु · सेसं ' इति पाठः । ३ प्रतिषु ' जाव सुहुमसांपराइयअदाए ' इति पाठः ।
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