Book Title: Shatkhandagama Pustak 08
Author(s): Pushpadant, Bhutbali, Hiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
Publisher: Jain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
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२८८ ]
एत्तिओ चैव विसेसो, णत्थि अण्णत्थ कत्थ वि ।
छक्खंडागमे बंधसामित्तार्वचओ
सादावेदणीयस्स को बंधो को अबंधो ? ॥ २१३ ॥
सुगमं ।
असंजदसम्मादिट्टिपहुडि जाव खीणकसायवीदरागछदुमत्था बंधा ! एदे बंधा, अबंधा णत्थि ॥ २१४ ॥
सादावेदणीयस्स बंधे। उदयादो पुत्रं पच्छा वा वोच्छिण्णो त्ति विचारो णत्थि, एत्थ बंधोदयाणं वोच्छेदाभावादो । सोदय-परोदओ बंधो अद्भुवोदयत्तादो, असंजदसम्मादिङिहुड जाव पत्तसंजदो त्ति बंधो सांतरा । उवरि णिरंतरो, पडिवक्खपयडीए बंधाभावादो । पच्चया सुगमा । असंजदसम्मादिट्ठी देव - मणुस गइसंजुत्तं; उवरिमा देवगइसंजुत्तमगइसंजुत्तं च बंधंति, साहावियादो | चउगइअसंजदसम्मादिट्टिणी, दुगइसंजदासंजदा सामी । उवरि मणुसा चैव । बंधद्धाणं सुगमं । बंधवाच्छेदो णत्थि, ' अबंधा णत्थि ' त्ति सुद्दिट्ठत्तादो | सादिअद्भुवो बंधो, अद्भुवबंधित्तादो ।
विशेष है, अन्यत्र कहीं भी और कुछ विशेषता नहीं है ।
सातावेदनीयका कौन बन्धक और कौन अबन्धक है ? ॥ २९३ ॥
[ ३, २१३.
यह सूत्र सुगम है |
असंयतसम्यग्दृष्टिसे लेकर क्षीणकषायवीतरागछद्मस्थ तक बन्धक हैं । ये बन्धक हैं, अबन्धक नहीं हैं ॥ २१४ ॥
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सातावेदनीयका बन्ध उदयसे पूर्वमें या पश्चात् व्युच्छिन्न होता है, यह विचार नहीं है, क्योंकि, यहां उसके बन्ध और उदयके व्युच्छेदका अभाव है । स्वोदय-परोदय बन्ध होता है, क्योंकि, वह अध्रुवोदयी है । असंयत सम्यग्दृष्टिसे लेकर प्रमत्तसंयत तक उसका बन्ध सान्तर होता है । ऊपर निरन्तर बन्ध होता है, क्योंकि, वहां उसकी प्रतिपक्ष प्रकृतिके बन्धका अभाव है । प्रत्यय सुगम हैं । असंयतसम्यग्दृष्टि जीव देव व मनुष्य गतिसे संयुक्त बांधते हैं; उपरिम जीव देवगति से संयुक्त और अगतिसंयुक्त बांधते हैं, क्योंकि, ऐसा स्वभाव है । चारों गतियोंके असंयतसम्यग्दृष्टि और दो गतियोंके संयतासंयत स्वामी हैं । उपरिम गुणस्थानवर्ती मनुष्य ही स्वामी हैं । बन्धाध्वान सुगम है | बन्धव्युच्छेद नहीं है, क्योंकि, वह ' अबन्धक नहीं हैं ' इस प्रकार सूत्रमें ही निर्दिष्ट है । सादि व अध्रुव बन्ध होता है, क्योंकि, वह अध्रुवबन्धी है ।
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